Mumbai News: आपसी तलाक के लिए पत्नी की सहमति वापस लेना क्रूरता मामले को रद्द करने का आधार नहीं
- अदालत ने पति के खिलाफ पत्नी को प्रताड़ित के आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से किया इनकार
- मुंबई के काला चौक पुलिस स्टेशन में याचिकाकर्ता (पति) के खिलाफ एफआईआर दर्ज
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ पत्नी द्वारा दर्ज कराए मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए अपने फैसले में कहा कि आपसी तलाक के लिए पत्नी की सहमति वापस लेना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं है। इसे उसके पति के खिलाफ चल रही क्रूरता के मामले को रद्द करने के आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष मुंबई निवासी की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(बी) किसी भी पक्ष को आपसी तलाक के लिए सहमति वापस लेने का पूर्ण अधिकार देती है, चाहे अदालत के अंदर या बाहर कोई पूर्व वचनबद्धता या समझौता क्यों न हो? इसलिए हमें यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि पत्नी द्वारा समझौते से मुकरने के कृत्य को याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं कहा जा सकता है।
क्या है पूरा मामला
याचिकाकर्ता का प्रतिवादी (पत्नी) से 2015 में आर्य समाज मंदिर में विवाह हुआ। उनकी शादी लंबे समय तक नहीं चली। पत्नी ने 2018 में मुंबई के काला चौक पुलिस स्टेशन में पति और उसके परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, शारीरिक क्रूरता और धमकियों का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें उसके शादी के समय लिए 45 लाख रुपए के गहने नहीं लौटाने का आरोप है। आपराधिक कार्यवाही के साथ-साथ दंपति ने तलाक की कार्यवाही शुरू की और नवंबर 2022 में एक समझौते पर पहुंचे। उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (बी) के तहत आपसी सहमति से तलाक लेने का फैसला किया। समझौते में याचिकाकर्ता द्वारा भरण-पोषण का भुगतान करने और साझा फ्लैट को पत्नी को हस्तांतरित करने के प्रावधान शामिल थे। याचिकाकर्ता द्वारा भरण-पोषण का भुगतान और संपत्ति (फ्लैट) के हस्तांतरण के सम्बन्ध में शर्तों का पालन नहीं करने पर विवाद शुरू हो गए। पत्नी ने जनवरी 2024 में समझौते का पालन न करने का हवाला देते हुए आपसी तलाक के साथ आगे बढ़ने के लिए अपनी सहमति वापस ले ली।