ईमानदार सरकार का होना आवश्यक , विकल्प है हमारे पास : सिसोदिया

ईमानदार सरकार का होना आवश्यक , विकल्प है हमारे पास : सिसोदिया

Bhaskar Hindi
Update: 2019-08-12 08:43 GMT
ईमानदार सरकार का होना आवश्यक , विकल्प है हमारे पास : सिसोदिया

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित राजेन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यान के लिए नागपुर पधारे दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जनता ने कुछ सवाल किए जिसका जवाब  उन्होंने दिए। 

Q.  आजकल पत्रकारिता द्वारा प्रस्तुत सामग्री की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगने लगे हैं, इसके कारण और निराकरण में आम जनता की भूमिका पर प्रकाश डालिए? - सागर खादीवाला
A. मेरी राय में जनता की भूमिका अहम है। ऐसी  सरकार चुनें जो पत्रकारिता को दबाव मे न रखे। अगर ऐसी सरकार चुनते हैं जो पत्रकारिता को दबाव में रखती है, तो हमें न पत्रकार मिलेंगे और न ही सरकार मिलेगी। ईमानदार पत्रकारिता के लिए ईमानदार सरकार का होना आवश्यक है। हमारे पास विकल्प है।

Q.  महानगरपालिका के स्कूलों की स्थिति बहुत बुरी है,  ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? - दीपक साने
A. देश के कई राज्यों में सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं। इसलिए ऐसी ‘राजनीति’ चुने जो स्कूल खुलवाए। थोड़ा होमवर्क करने की भी आवश्यकता है। जिस जगह सरकारी स्कूल बंद हुए, वहां प्राइवेट स्कूल फलित हुए हैं। इसका मतलब पॉलिसी फेलियोर है, समाज नहीं। 

Q.  गरीबी मतलब क्या है? अशिक्षा मतलब गरीबी या बेरोजगारी मतलब गरीबी?  -देव, विद्या सागर हाईस्कूल
A. गरीबी दो तरह की होती है। एक साधन संपन्न दु:खी लोग और दूसरे  साधन विहीन दु:खी लोग, जबकि अमीरी एक ही तरह की है-समृद्धि। साधन संपन्न और खुशी। मेरा भी व्यक्तिगत रूप से यही कहना है कि दोनों चाहिए। त्याग नहीं करना है और अपनी आवश्यकताओं से थोड़ा ज्यादा होना भी चाहिए, परंतु उपलब्ध संसाधनों के साथ खुश रहने वाला ही अमीर होता है।   

Q.  वूमन एम्पॉवरमेंट के लिए शिक्षा नीति में महिलाओं को कौन सी फैसिलिटी होना चाहिए? -प्रगति खोब्रागड़े
A. महिलाओं को अगर डिग्निटी एजुकेशन सिस्टम देने लगें तो बहुत अंतर पड़ेगा। हमारी किताबों में भी जेंडर भेद है। उनमें भी गड़बड़ी है। किताबों में भी जो उदाहरण दिए गए है, वे इसी आधार पर दिए गए हैं। जैसे लड्डू लेने के लिए बाहर राम जाएगा  और किचन में सीता लड्डू बांटेगी। सवाल ड्राफ्ट करने वाले भी इसी मानसिकता को फाॅलो करते हैं, लेकिन इसे  बदलने की जरूरत है। टेक्स्ट बुक के एक-एक पैराग्राफ को क्रिटिकली देखने की जरूरत है। 

Q.  रास्ते पर जन्म लेने वाले बच्चों को दाखिला लेने के साथ ही जाति प्रमाण-पत्र मिलने में कठिनाई होती है, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?- खुशाल ढाक, बिंझाणी कॉलेज
A. मुझे लगता है देश में ‘राइट टू एजुकेशन’ लागू होने से  बच्चा कहीं भी पैदा हुआ है, तो वो उसका फंडामेंटल राइट है। 

Q.  पूरे देश की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा चुकी है। सरकारी हॉस्पिटल किस प्रकार ठीक हो सकते हैं? -राजेन्द्र पटोरिया 
A. ईमानदार लोगों को वोट दें। जब तक बे-ईमान लोगों को वोट देंगे, तब तक स्वास्थ्य सेवा ठीक नहीं हो सकती। 

Q.  कई कॉलेजों में डोनेशन होने से स्टूडेन्ट्स का ड्रीम अधूरा रह जाता है, इसके लिए क्या करना चाहिए?  - आयुषि डोंगरे
A. ड्रीम बड़ा होता है, कॉलेज छोटा होता है। माध्यम, सपने में अंतर को समझना होगा। 

Q.   क्या फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम अपने देश में लाया जाना चाहिए? -हेतवी पटेल
A. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि किसी भी देश का एजुकेशन सिस्टम वहां की लोकल नीड्स, सोशल इकोनॉमी सिस्टम के हिसाब से डेवलप होता है। फिनलैंड में डेवलपमेंट हुआ है, उससे प्रेरणा लेना है, उसे कॉपी-पेस्ट नहीं करना है। 

Q.  सीनियर सिटीजन को हमेशा ही पेंशन और कई चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस व्यवस्था को किस तरह बदला जा सकता है? -प्रकाश पाठक
A. राजनीति साफ कर लीजिए, बहुत सारी चीजें ठीक हो जाएँगी। हमें संघर्ष करना पड़ेगा। किताबों मेँ पढ़ते हैं, तीन तरह के देश होते हैं-विकसित, विकासशील और अविकसित। भारत विकासशील  देशों में आता है। जब तक राजनीति नहीं बदलेगी, तब तक भारत विकसित देश नहीं बना सकता है। राजनीति बदलिए भारत विकसित देश बनेगा। बेईमानी की राजनीति बंद करना होगा। 

Q.  दिल्ली में पानी और बिजली मुफ्त देने से क्या अर्थव्यवस्था पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा?
A. जब पानी और बिजली मुफ्त देना शुरू किया तो उससे लोग और जागरूक हुए। ऐसा नहीं कि लोग मुफ्त का समझकर बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं या फायदा उठा रहे हैं। लोगों ने घोषित ‘फ्री’ तक ही अपने को सीमित रखना शुरू किया है। इससे संसाधनों का दुरुपयोग नहीं हो रहा है। डेटा के साथ बुद्धि लगाने की जरूरत है। इससे देश की अर्थव्यवस्था ही खड़ी हो रही है। 

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