कलर ब्लाइंड से ग्रसित एमएसआरटीसी के ड्राइवर पहुंचे हाईकोर्ट, 13 मार्च को भाग्य का फैसला

कलर ब्लाइंड से ग्रसित एमएसआरटीसी के ड्राइवर पहुंचे हाईकोर्ट, 13 मार्च को भाग्य का फैसला

Bhaskar Hindi
Update: 2020-03-09 12:33 GMT
कलर ब्लाइंड से ग्रसित एमएसआरटीसी के ड्राइवर पहुंचे हाईकोर्ट, 13 मार्च को भाग्य का फैसला

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कलर ब्लाइंड (रंगो को पहचानने में परेशानी) की परेशानी से जूझ रहे  महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन महामंडल(एमएसआरटीसी) के सैकड़ो ड्राइवरों का फैसला बांबे हाईकोर्ट में 13 मार्च को होगा। इस तारीख को तय किया जाएगा कि इन ड्राइवरों को वैकल्पिक रुप से दिया गया काम कायम रखा जाए की नहीं। इस दिन यह भी तय होगा कि ड्राइवरों का रोके गए वेतन का भुगतान किया जाएगा की नहीं। याचिका में कलर ब्लाइंड से ग्रसित ड्राइवरों ने मुख्य रुप से एमएसआरटीसी के उस निर्णय को चुनौती दी है जिसके तहत उन्हें काम पर आने से रोका गया हैं। याचिका में कहा गया है कि एमएसआरटीसी का यह निर्णय मनमानीपूर्ण हैं। अप्रैल 2018 से इन ड्राइवरों को वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा हैं। हालांकि एमएसआरटीसी ने कलर ब्लाइंड से ग्रसित ड्राइवरों के लिए एक नीति बनाई है। जिसके अतंगर्त उन्हें वैकल्पिक कार्य के रुप में चपरासी,गेस्ट हाउस अटेंडेंट, व रसोइए का काम देने का प्रावाधान किया गया हैं। लेकिन एमएसआरटीसी इन ड्राइवरों का अप्रैल 2018 से बकाया वेतन के भुगतान के पक्ष में नहीं हैं। मामले की न्यायमित्र के रुप में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्त मिलिंद साठे ने कहा कि वैकल्पिक कार्य से संबंधित एमएसआरटीसी की नीति व्यावहारिक नजर आ रही हैं। लेकिन बकाया वेतन का भुगतान न करने का निर्णय उचित नहीं लगता हैं। क्योंकि वैकल्पिक कार्य न मिलने तक ड्राइवर को घर में खाली बैठना पड़ेगा। ऐसे में वह अपने परिवार से जुड़े दायित्व का निवर्हन कैसे करेगा। इसलिए मैंने एमएसआरडीसी को ड्राइवरों के बकाया वेतन का भुगतान करने का सुझाव दिया हैं। और यह आश्वस्त करने को कहा है कि सभी ड्राइवरों को वैकल्पिक काम मिले। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 13 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। इसलिए अब अगली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में ड्राइवरों के भाग्य का फैसला होगा। 

 

गहने का बिल नहीं पेश किया, इस आधार पर महिला को स्त्रीधन मांगने के अधिकार से नहीं किया जा सकता वंचित

वहीं महिला ने सुनवाई के दौरान अपने सोने के गहने को लेकर बिल नहीं पेश सिर्फ इस आधार पर उसे स्त्रीधन मांगने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता हैं। बांबे हाईकोर्ट ने एक महिला के आवेदन पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया हैं। इससे पहले महिला ने सत्र न्यायालय में इस विषय में आवेदन दायर किया था। आवेदन में महिला ने दावा किया था कि शादी के बाद जब वह ससुराल गई थी तो वह अपने साथ सोने के गहने लेकर गई थी। अब ससुरालवाले उसे वह गहने नहीं लौटा रहे हैं। उसके पास गहनों का बिल भी हैं। सत्र न्यायालय ने कहा कि चूंकी महिला ने मैजिस्ट्रेट कोर्ट के सामने अपने गहनों के लेकर बिल नहीं दिखाया था इसलिए अब हम उसके द्वारा गहनों के संबंध में पेश किए गए बिल पर विचार नहीं कर सकते हैं। महिला की ओर से विधि सेवा प्राधिकरण की ओर से नियुक्ति किए गए वकील ने कहा कि आवेदनकर्ता महिला कानूनी प्रक्रिया को लेकर बहुत जागरुक नहीं है।इसलिए उसे गहनों व अपनी दूसरी वस्तुओं के विषय में अपनी बात रखने के लिए एक मौका और दिया जाए। महिला के पति व उसके अन्य रिश्तेदारों की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि आवेदनकर्ता महिला शादी के बाद ससुराल में बहुत कम समय तक रही हैं। जब वह घर छोड़कर गई तो वह अपनी सारी चीजे व गहने लेकर चली गई थी। इसलिए अब गहने वापस करने से जुड़ी मांग पर विचार न किया जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति साधना जाधव ने कहा कि महिला ने मैजिस्ट्रेट के सामने अपने सोने के गहनों को लेकर बिल नहीं दिखाया सिर्फ इस आधार पर उसे स्त्रीधन मांगने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने महिला को मैजिस्ट्रेट कोर्ट में अपने समान व गहनों की मांग को लेकर बिल के साथ नए सिरे से आवेदन दायर करने का निर्देश दिया। और मैजिस्ट्रेट को महिला के गहने से जुड़े दावे को लेकर दायर आवेदन पर तीन महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया।
 

 

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