राम मंदिर ट्रस्ट की जमीन पर मनमाना निर्माण, शिकायत पर कार्रवाई नहीं
बेपरवाह बना जिला प्रशासन राम मंदिर ट्रस्ट की जमीन पर मनमाना निर्माण, शिकायत पर कार्रवाई नहीं
डिजिटल डेस्क,शहडोल। एक ओर अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण चल रहा है वहीं जिले की प्रसिद्ध मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की परिसंपत्तियां अतिक्रमण और कुप्रबंधन की शिकार हैं। नए व पुराने ट्रस्टियों के बीच विवाद की स्थिति होने के कारण हाई कोर्ट के निर्देश पर राम मंदिर ट्रस्ट की परिसंपत्तियों की निगरानी का कार्य स्थानीय प्रशासन को दिया गया है। इसके बावजूद ट्रस्ट की दुकानों का संचालन कौडिय़ों के दाम पर हो रहा है। किराए का निर्धारण वर्षों से नहीं हो पाया है। ट्रस्ट की जमीनों पर अतिक्रमण हो चुके हैं। दुकानदार मालिक बन बैठे हैं और मन माफिक निर्माण करा चुके हैं। इन सबके बावजूद प्रशासनिक समिति बेशकीमती संपत्तियों का संरक्षण नहीं कर पा रही है।
3 हजार है अधिकतम किराया-
राम मंदिर ट्रस्ट की 43 दुकानें 25-30 वर्ष से किराए पर चल रही हैं। जिनका किराया अभी तक रिवाइज नहीं हुआ है। बताया गया है कि अभी दुकानों का किराया 40 रुपए से लेकर अधिकतम 3 हजार रुपए तक है। जबकि ये सभी दुकानें नगर के हृदय स्थल पर हैं। मौजूदा समय पर इसी प्रकार की दुकानों का किराया 10 हजार रुपए से कम नहीं है। ट्रस्ट का मामला कोर्ट में होने के बाद प्रशासनिक समिति के राजस्व विभाग के आरआई द्वारा किराया वसूल किया जाता है। जिन्होंने कई माह से वसूल नहीं किया है। यह भी बात सामने आ रही है कि उनके पास वसूली का हिसाब किताब भी दुरुस्त नहीं है।
भाड़ा नियंत्रण अधिकारी करवा रहे जांच-
समिति ने जब किराया बढ़ाने के लिए दुकानदारों की बैठक ली, जिसमें बात नहीं बनी। तब मामला भाड़ा नियंत्रण अधिकारी के कोर्ट में ले जाया गया। पिछले तीन वर्ष से मामला चल ही रहा है। बताया गया है कि मौके की जांच कर किराया बढ़ाने के लिए नगरपालिका के इंजीनियर देव कुमार गुप्ता तथा पीडब्ल्यूडी के राकेश चतुर्वेदी को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन आज तक प्रतिवेदन नहीं प्रस्तुत किया गया। समिति के गैर शासकीय सदस्य एडवोकेट रमेश त्रिपाठी ने आरोपित किया कि दुकानदारों के दवाब में इंजीनियर द्वारा प्रतिवेदन नहीं सौंपा जा रहा है।
न्यायालय के निर्देश के बाद भी प्रशासन ने नहीं हटवाया अतिक्रमण-
जिन लोगों ने दुकानों को किराए पर लिया था उन सभी ने अपने हिसाब से निर्माण करा लिया। बिना ट्रस्ट की अनुमति के अनेक लोगों ने दुकान के पीछे बड़ी-बड़ी हवेलियां तक बना डालीं। प्रशासन की समिति होने के बाद भी इन निर्माण पर रोक नहीं लगाई गई। जबकि किसी भी प्रकार का निर्माण बिना ट्रस्ट की अनुमति के नहीं हो सकती। बताया गया है कि पूर्व में हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए कोर्ट ने आदेशित भी किया था, लेकिन वह मामला भी फाइलों में दफन है।
तदर्थ समिति ही जिम्मेदार-
मंदिर के ट्रस्टी एडवोकेट चंद्रेश द्विवेदी का कहना है कि ट्रस्ट की परिसंपत्तियों के खुर्द बुर्द होने के लिए बनी तदर्थ समिति ही जिम्मेदार है। किराए के मामले को भाड़ा नियंत्रण अधिकारी के कोर्ट में ले जाने पर भी सवाल उठाते उन्होंने कहा कि चूंकि ट्रस्ट निजी संपत्ति है इसलिए उन्हें सुनवाई का अधिकार नहीं है। समिति की जिम्मेदारी संपत्ति की सुरक्षा करना है लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो रही है।
मामले का कराएंगे परीक्षण-
किराया और ट्रस्ट की जमीनों पर अतिक्रमण सहित अवैध निर्माण के मामले का परीक्षण कराते हैं। ट्रस्ट के हित में जो भी होगा निर्णय लिया जाएगा।
भरत सोनी (तहसीलदार व समिति प्रमुख)