आरएसएस की प्रतिनिधि सभा का एजेंडा, सहयोगी संगठनों में समन्वय पर जोर

आरएसएस की प्रतिनिधि सभा का एजेंडा, सहयोगी संगठनों में समन्वय पर जोर

Bhaskar Hindi
Update: 2020-03-02 15:21 GMT
आरएसएस की प्रतिनिधि सभा का एजेंडा, सहयोगी संगठनों में समन्वय पर जोर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिनिधि सभा 15 से 17 फरवरी तक होगी। संगठन मामले में सबसे महत्वपूर्ण मानी जानेवाली यह सभा इस बार कर्नाटक के बंगलुरु में आयोजित है। सूत्र के अनुसार सभा के लिए आरएसएस का एजेंडा तय है। नागरिकता को लेकर गर्मायी राजनीति के बीच संघ की यह सभा काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस सभा में आरएसएस से जुड़े सहयोगी संगठनों में समन्वय के लिए विशेष तौर पर चर्चा हो सकती है। गौरतलब है कि आरएसएस की प्रतिनिधि सभा में उसके प्रमुख पदाधिकारी ही शामिल होते हैं। संघ की संगठनात्मक रचना के लिहाज से तय प्रांतों के पदाधिकारी अपनी रिपोर्ट पेश करते हैं। इसके अलावा भारतीय किसान संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिंदू परिषद , भाजपा जैसे संगठनों को उनकी बात रखने का मौका दिया जाता है। कुछ प्रस्ताव पास किए जाते हैं। इससे पहले प्रतिनिधि सभा में संघ के सहयोगी संगठनों की शिकायत भाजपा से भी रही है।

सहयोगी संगठनों की ओर से कहा जाता रहा है कि सत्ता में पहुंचने के बाद भी भाजपा संघ के एजेंडे के अनुरुप कार्य नहीं कर पा रही है। लेकिन पिछले कुछ समय से हर कोई कह रहा है कि भाजपा ने कम समय में संघ के एजेंडे पर अधिक काम किया है। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार बनने के बाद सबसे अधिक कार्य संघ के एजेंडे के अनुरुप हुआ। कश्मीर में धारा 370, अयोध्या में मंदिर निर्माण, नागरिकता संसोधन कानून जैसे मुद्दे संघ के एजेंडे में शामिल रहे हैं। अब ये मुद्दे संघ के लिहाज से हल हो गए हैं। केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में दूसरी बारे सरकार बनने के बाद संघ की यह पहली प्रतिनिधि सभा है। सीएए का  विरोध, दिल्ली में हिंसा के अलावा जनसंख्या का मामला गर्माया है। एेसे में सबकी नजर रहेगी कि संघ की प्रतिनिधि सभा में इन मामलों को लेकर क्या मंथन होता है। 

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