सामाजिक न्याय: 9 साल में 40 हजार करोड़ की कटौती, योजनाएं लटकीं

  • सामाजिक न्याय करने में फिसड्डी साबित हो रही सरकार
  • अधिवेशन में कानून बनाकर एजेंसियों की जिम्मेदारी निश्चित करने की मांग
  • निधि का बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-10 09:52 GMT

डिजिटल डेस्क, नागपुर. प्रदेश की राजनीति में गत कुछ वर्षों में बड़े उलटफेर हुए हैं। 2014 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में पांच साल सरकार चली। इसके बाद शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस की महाविकास आघाड़ी की सरकार बनी। फिर भाजपा-राकांपा-शिवसेना की महायुति की सरकार बनी। सरकारें बदलती रहीं। जो कभी एकसाथ मंच साझा करना पसंद नहीं करते थे, आज सत्ता साझा कर रहे हैं। लेकिन जन-सरोकार के मुद्दे जहां थे, वहीं रह गए। योजनाएं जहां की वहीं रूक गईं। योजनाओं की निधि में बढ़ोतरी होने की बजाए इसमें कटौती होती चली गईं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव समाज कल्याण की योजनाओं पर पड़ा।

निधि का बैकलॉग लगातार बढ़ रहा है

अनुसूचित जाति वर्ग के उत्थान के लिए चलाई जाने वाली अनेक योजनाओं में पिछले कुछ वर्षों से निधि पर कैंची चल रही है। 2015-16 से 2023-24 तक अनुसूचित जाति विकास की योजनाओं में करीब 40 हजार करोड़ रुपए नहीं दिए गए। निधि का बैकलॉग लगातार बढ़ते जा रहा है। बजट में निधि का प्रावधान हुआ, लेकिन योजनाओं का निधि का वितरण नहीं किया गया। यहीं बजट में भी हर साल निधि कम की गई। ऐसे में तेलंगना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान सरकार की तर्ज पर कानून बनाकर एजेंसियों की जिम्मेदारी निश्चित करने की मांग की जा रही है। इस कारण नागपुर अधिवेशन में बजट का कानून बनाने की मांग उठ रही है।

अनेक योजनाएं प्रभावित, जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाया लाभ

मामला एक योजना से जुड़ा नहीं है। अनेक योजनाएं इससे प्रभावित हुई है, जिस कारण जरूरतमंदों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाया है।

रमाई घरकुल योजना की बात की जाए तो 2010-11 से 2022-23 तक 7011 करोड़ निधि मंजूर की गई। खर्च 6758 करोड़ किए गए। बचे 165 करोड़ सरकार को समर्पित किए।

कर्मवीर दादासाहब गायकवाड सबलीकरण योजना के नाम पर सरकार 21036 एकड़ जमीन खरीदी की, किन्तु इसका लाभ 5900 परिवारों को मिला। 388 करोड़ में से 303 करोड़ किए।

अनुसूचित जाति वर्ग को अन्याय से न्याय दिलाने के लिए एट्रोसिटी एक्ट अंतर्गत नियम 16 के तहत 2019 से राज्यस्तरीय समिति का गठन ही नहीं किया। दो-तीन महीने पहले समिति बनाई, किन्तु अब तक एक भी बैठक नहीं हुई। कानून में इसका प्रावधान और राज्य की जिम्मेदारी होने के बावजूद यह नहीं हुआ।

डिम्ड यूनिवर्सिटी के नाम पर एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को शिष्यवृत्ति व शुल्क माफी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। विदेशी शिष्यवृत्ति की संख्या में बढ़ोतरी नहीं की गई। 75 से 200 करने की मांग अनेक वर्षों से शुरू है।

आदिवासी समाज के लिए स्वतंत्र राज्य आयोग गठित करने बाबत राज्य सरकार ने हाल में निर्णय लिया। आयोग तो निर्माण किया, लेकिन उस पर अब तक किसी की नियुक्ति नहीं की। फिलहाल राज्य अनुसूचित जाति आयोग भी बर्खास्तगी जैसी स्थिति में है। नियुक्तियां हुई नहीं। आयोग का कामकाज बंद है।

अनुसूचित जाति और जनजाति के विकास को लेकर सरकार पर उदासीनता बरतने का आरोप लग रहा है। ऐसे अनेक योजनाएं हैं, जिसमें यहां तो निधि की कटौती की गई या फिर योजनओं को ठंडे बस्ते में डालने का काम चल रहा है। इस अधिवेशन में कानून बनाकर एजेंसियों की जिम्मेदारी निश्चित करने की मांग की गई है।


सरकार से चर्चा हुई है, निर्णय नहीं हो रहे

ई.जेड. खोब्रागडे, पूर्व आईएएस व अध्यक्ष संविधान फाउंडेशन के मुताबिक सामाजिक न्याय विभाग की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री के पास है। सामाजिक न्याय के विषयों पर तत्काल निर्णय होने की अपेक्षा है। वास्तविकता यह है कि निर्णय नहीं हो रहे। इस अधिवेशन में उक्त प्रश्न भेजकर हमने सरकार और जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित किया है। कुछ मुद्दों पर चर्चा भी हुई। लेकिन निर्णय नहीं हुए। सरकार संविधान के अनुसार अपनी जिम्मेदारी का निवर्हन कर रही है, यह कृति से दिखना चाहिए। यह सरकार दुर्बल-शोषित-वंचित वर्ग के लिए है, यह दिखना चाहिए।


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