Nagpur News: समय और श्रम बचाने के लिए शुरू योजना में लग रहा वक्त, 21 दिन में नहीं बन रहे प्रमाणपत्र

  • जिला प्रशासन के पास 100 हजार से ज्यादा मामले प्रलंबित
  • 21 दिन का समय लेकिन समय पर नहीं बन रहे प्रमाणपत्र
  • जिला प्रशासन का ध्यान नहीं जेब हो रही खाली

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-20 14:24 GMT

Nagpur News : राज्य सरकार ने लोगों का समय और श्रम बचाने के लिए आपले सरकार सेवा केंद्र शुरू किए। जिलाधीश कार्यालय के चक्कर लगाने की झंझट से बचाने के लिए जिले में जगह-जगह सेवा केंद्र शुरू किए गए है। 21 दिन के भीतर प्रमाणपत्र बन जाना चाहिए, लेकिन देखा गया कि जिला प्रशासन के पास एक हजार से ज्यादा मामले पड़े है, जो तय समय पार कर चुके है। पीड़ित सेवा केंद्र जाता है और जिला प्रशासन से प्रमाणपत्र नहीं बनने का जवाब सुनकर बैरंग लौट जाता है।

नागपुर जिले (शहर व ग्रामीण) में 400 से ज्यादा आपले सरकार सेवा केंद्र है। सेवा केंद्र के माध्यम से प्रतिज्ञापत्र, जाति प्रमाणपत्र, डोमिसाइल व राष्ट्रीयता प्रमाणपत्र, नॉन क्रिमिलेयर आदि प्रमाणपत्र बनाए जाते है। सेवा केंद्र जिला प्रशासन के साथ मिलकर सारा काम आनलाइन होता है। आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को उच्च शिक्षा के लिए जाति प्रमाणपत्र व ओबीसी होने पर नान क्रिमिलेयर जरूरी होता है। नियमों पर गौर करे तो 21 दिन में प्रमाणपत्र बनना चाहिए, लेकिन तय समय के बाद भी जिला प्रशासन की तरफ से प्रमाणपत्र जारी नहीं हो सके है। जिला प्रशासन के पास 100 हजार से ज्यादा मामले प्रलंबित है। लोगों का कहना है कि जिलाधीश डा. विपिन इटनकर ध्यान दे तो व्यवस्था में सुधार हो सकता है।

ये है प्रमुख कारण

प्रमाणपत्र बनने में देरी के प्रमुख कारण इसप्रकार है। प्रमाणपत्र बाबू के पास से नायब तहसीलदार होकर उपजिलाधीश के पास पहुंचता है। उपजिलाधीश की मुहर लगने के बाद ही प्रमाणपत्र जारी होता है। इन तीन कर्मचारियों में कोई एक छुट्टी पर होने पर मामला अटक जाता है। समय पर दस्तावेज तैयार हो, इसके लिए कोई अधिकारी गंभीर नहीं है।

आपत्ती रेस करने में देरी

किसी केस में दस्तावेजों की कमी या अन्य खामी होने पर जिला प्रशासन द्वारा तुरंत आनलाइन आपत्ति रेज करनी चाहिए। आपत्ति रेस करने में प्रशासन की तरफ से विलंब किया जाता है। आपत्ती रेस करने के बाद ही सेवा केंद्र खामियों को दूर कर सकेगा। इसी में समय निकल जाता है। उम्मीदवार केवल चक्कर काटने को मजबूर होता है।

जिला प्रशासन का ध्यान नहीं जेब हो रही खाली

सरकार ने हर प्रमाणपत्र के लिए शुल्क तय किया है और निगरानी की जिम्मेदारी जिलाधीश की है। सेवा केंद्रों में तय शुल्क से कई गुणा ज्यादा शुल्क वसूला जा रहा है। उम्मीदवारों की जेब खाली हो रही है, लेकिन जिला प्रशासन का ध्यान नहीं है। प्रशासन का रटा रटाया जवाब है कि हमें शिकायत नहीं मिली। लोगों का कहना है कि शिकायत के बाद ही अधिकारी कार्रवाई करेंगे, तो इतनी बड़ी मशीनरी किस काम की। सेवा केंद्रों के सामने रेट बोर्ड लगाने का नियम है, लेकिन इसकी केवल खानापूर्ति हो रही है। लोगों का कहना है कि आम लोगों के साथ क्या हो रहा इसकी सुध लेनेवाला अधिकारी दिखाई नहीं दे रहा। लोग बेचारे ज्यादा शुल्क देने को मजबूर है। 

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