Nagpur News: आधी आबादी को पूरा हक देने में अब भी पीछे, 62 साल में सिर्फ 5 बार विधायक बनीं महिलाएं

  • बलराज, सुकलीकर में होता रहा रोचक मुकाबला
  • विधेयक पर अमल होता तो यह स्थिति नहीं रहती

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-06 14:02 GMT

Nagpur News : अजय त्रिपाठी | महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने आधी आबादी यानी महिलाओं को टिकट देने में जिस तरह से कंजूसी बरती है, उसे देखकर तो यही लगता है, 'नारी शक्ति' के दावे अभी चुनावी नारों तक ही सीमित है। राज्य की 288 विधानसभा सीटों के लिए हो रहे चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को ना के बराबर टिकटें दी हैं। बात नागपुर की करें तो आधी आबादी को पूरा हक यहां की चुनावी राजनीति के लिए अब भी दूर की कौड़ी है। इस मामले में आंकड़े बेहद खराब हैं। पिछले छह दशकों में हुए 13 विधानसभा चुनावों में नागपुर जिले की अलग-अलग सीटों पर अब तक केवल पांच बार ही महिला उम्मीदवार निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंची हैं। इस बार के चुनाव में भी बड़े दलों में केवल कांग्रेस ने मजबूरी में जिले की सावनेर विधानसभा सीट से अनुजा केदार को अपना अधिकृत उम्मीदवार बनाया है, क्योंकि उनके पति सुनील केदार की विधायकी कोर्ट केस के कारण चली गई थी और उन पर अगले 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लग गई है।

हालांकि, मौजूदा विधानसभा चुनाव में नागपुर के शहरी इलाकों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से ज़्यादा है, लेकिन, फिर भी राजनीतिक दलों ने जिले की 12 विधानसभा सीटों में महिलाओं को हाशिये पर रखा है। दरअसल,1960 में अलग राज्य बनने के बाद 1962 में महाराष्ट्र में जब पहला विधानसभा चुनाव हुआ था, तब कुल उम्मीदवारों में से केवल 4% महिलाएं थीं। इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, साल 1962 से 2019 के बीच महाराष्ट्र में 13 विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में नागपुर जिले की विभिन्न सीटों के लिए लगभग 1,854 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई। इसमें कुल उम्मीदवारों में केवल 82 महिलाएं थीं।

ऐसा रहा महिला विधायकों का सफर : दिलचस्प बात यह है, 1962 में महाराष्ट्र के पहले विधानसभा चुनाव के दौरान नागपुर जिले में 10 विधानसभा सीटें थीं। नागपुर सीट पर कांग्रेस के टिकट पर महिला उम्मीदवार सुशीला बलराज ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद सुशीला बलराज 1967 और 1972 में नागपुर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए फिर से चुनी गईं। इसके बाद नागपुर जिले से साल 1985 में एक बार फिर कांग्रेस की टिकट पर दमयंती देशभ्रतार ने उत्तर नागपुर सीट से जीत दर्ज की। फिर करीब 14 साल तक नागपुर जिले से कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई। आखिरी बार 1999 में आरपीआई के टिकट पर सुलेखा कुंभारे कामठी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुईं थी।

बलराज, सुकलीकर में होता रहा रोचक मुकाबला

हालांकि, कालांतर में पश्चिम नागपुर सीट को कांग्रेस की सुशीला बलराज एवं जनसंघ की सुमतिताई सुकलीकर के बीच संघर्ष के लिए पहचाना जाता था। लगातार तीन बार बलराज ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 1978 के चुनाव में फिजां बदल गई। निवर्तमान विधायक सुशीला बलराज इंदिरा गांधी का साथ छोड़ चुकी थीं। राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रत्याशी के रूप में वे केवल 5072 वोट ही ले सकीं, जबकि इंदिरा कांग्रेस के भाऊ मुलक 45 हजार से अधिक वोट लेकर विजयी हुए। जनसंघ की सुकलीकर जनता पार्टी की टिकट पर लड़ी थीं। 33531 वोट लेकर वे इस बार भी दूसरे स्थान पर रहीं।

विधेयक पर अमल होता तो यह स्थिति नहीं रहती

सुलेखा कुंभारे, पूर्व राज्यमंत्री के मुताबिक महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश हो चुका है। कानून पर अमल के लिए थोड़ा इंतजार करने को कहा गया है। प्रमुख राजनीतिक दलों ने कहा था कि इस चुनाव में महिलाओं को आरक्षण देकर प्रस्तावित कानून पर अमल की शुरुआत करेंगे, लेकिन किसी ने भी इसकी शुरुआत नहीं की। पहले माना जाता रहा है, राजनीति के लिए महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी है। स्थानीय निकाय संस्थाओं में महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी और उनके नेतृत्वगुण को देखते हुए भी विधानसभा चुनाव में महिलाओं को अधिक उम्मीदवारी नहीं मिल पाना दुखद ही है।




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