बेटों से इलाज के खर्च और भरण-पोषण के लिए वृद्ध मां का अदालत में आना दुर्भाग्यपूर्ण - बॉम्बे हाईकोर्ट

  • वृद्ध मां का अदालत में आना दुर्भाग्यपूर्ण
  • बेटों से इलाज के खर्च और भरण-पोषण के लिए गुहार
  • मजिस्ट्रेट एवं सेशन कोर्ट ने वृद्ध मां को घुटने की सर्जरी में आए मेडिकल खर्च को चुकाने का दिया था निर्देश
  • हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को रखा बरकरार

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-16 15:01 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि वृद्ध मां को अपने बेटों से भरण-पोषण और चिकित्सा खर्च पाने के लिए अदालत में आना दुर्भाग्यपूर्ण है। अदालत ने मां के घुटने की सर्जरी के लिए किए गए खर्च को उसके दोनों बेटों को भुगतान करने के मजिस्ट्रेट एवं सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की एकलपीठ के समक्ष वृद्ध महिला के बेटों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दलील दी कि माता-पिता ने पैतृक संपत्ति बेच दी और वे आर्थिक रूप से बेटों पर निर्भर नहीं हैं। उन्हें अपने भरण-पोषण और चिकित्सा व्यय के लिए बेटों की आवश्यकता नहीं है। दोनों बेटों का वेतन कम है। वृद्ध महिला के वकील ने कहा कि शादी के बाद दोनों बच्चे आत्मनिर्भर हो गए। दोनों बच्चों ने देखभाल करने से इनकार कर दिया. 11 मई 2014 को दोनों बच्चे घर आए और पुश्तैनी मकान बेचने की लड़ाई करने लगे और मारपीट भी की.

पीठ ने कहा कि दोनों अदालतों के अंतरिम आदेशों में कोई त्रुटि नहीं है। पीठ ने इस बात पर नाराजगी जताई कि मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा मूल शिकायत को 2014 से लंबित रखा गया. अदालत ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट छह महीने के भीतर मामले को पूरा करें। साथ ही पीठ ने मजिस्ट्रेट एवं सेशन कोर्ट द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि महिला ने अपने घुटने की सर्जरी कराई और इसमें 3 लाख 1 हजार 709 रुपए का खर्च आया।

वृद्ध महिला ने सांगली जिले के जयसिंहपुर मजिस्ट्रेट कोर्ट में दो बेटों के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की थी। महिला ने कोर्ट में मांग की थी कि उसके घुटने की सर्जरी में आया तीन लाख रुपए का मेडिकल खर्च मिलना चाहिए. मजिस्ट्रेट कोर्ट ने शुरू में दोनों बेटों को चिकित्सा खर्च के लिए मां को एक-एक लाख रुपए देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ बच्चों ने सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सेशन कोर्ट ने भी 2017 में मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को बरकरार रखा और बेटों को मां के चिकित्सा खर्च के लिए एक-एक लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया. इस आदेश को बेटों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी.

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