अयोग्यता मामला: जनता की अदालत पहुंचे उद्धव, नार्वेकर बोले - मैंने कहां गलती की, बता नहीं सके

  • असली शिवसेना के मुद्दे पर नार्वेकर-शिंदे को मैं बहस की चुनौती देता हूं- उद्धव
  • विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर और मुख्यमंत्री को चुनौती
  • नार्वेकर बोले - मैंने कहां गलती की, बता नहीं सके

Bhaskar Hindi
Update: 2024-01-16 16:51 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। शिवसेना (उद्धव) पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मंगलवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को इस बात पर सार्वजनिक बहस करने की चुनौती दी कि कौन-सा गुट असली शिवसेना है। विधायकों की अयोग्यता मामले में विधानसभा अध्यक्ष ने 10 जनवरी को बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया था। नार्वेकर ने कहा था कि जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी समूह अस्तित्व में आए तो शिवसेना का शिंदे गुट ही असली शिवसेना था। विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के विश्लेषण के लिए उद्धव अपने वकीलों के साथ जनता के सामने आए।

शिवसेना (उद्धव) पक्ष प्रमुख ठाकरे ने वर्ली के नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया (एनएससीआई) में पत्रकारों से बातचीत की। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा शिवसेना (शिंदे) विधायकों की अयोग्यता मामले में शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाने पर नार्वेकर और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए। उद्धव गुट के वकीलों और शिवसेना विधायक अनिल परब ने इस मौके पर 1999 से लेकर 2018 तक शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों के कागजात और वीडियो सबूत के तौर पर पेश किए।

उद्धव गुट की दलील

• उद्धव गुट ने कहा कि इन सभी सबूतों को केंद्रीय चुनाव आयोग और विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष रखा था। लेकिन दोनों ने ही हमारे सबूतों को नजरअंदाज कर शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। इस मौके पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि हमने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और हमें उम्मीद है कि हमें न्याय जरूर मिलेगा। आज हमने दोनों फैसलों को जनता के बीच रखने के लिए जनता की अदालत में आने का फैसला किया।

• उद्धव गुट के वकील असीम सरोदे ने हजारों की संख्या में मौजूद लोगों और मीडिया के बीच कहा कि आज हम न्याय के लिए जनता की अदालत में आए हैं। सरोदे ने कहा कि चुनाव आयोग और विधानसभा अध्यक्ष दोनों को ही 1999 में शिवसेना में हुए फेरबदल की जानकारी दी गई थी। चुनाव आयोग ने यह माना था कि शिवसेना में संगठनात्मक बदलाव किए गए हैं। लेकिन फैसला देते समय यह रिकॉर्ड में नहीं लिया गया। उन्होंने कहा कि नार्वेकर ने सिर्फ चुनाव आयोग के फैसले को देखकर अपना फैसला सुना दिया।

• उद्धव गुट के विधायक अनिल परब ने कहा कि 13 मार्च, 2013 को चुनाव आयोग ने शिवसेना की 23 जनवरी, 2013 को हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उद्धव ठाकरे को शिवसेना पक्ष प्रमुख की नियुक्ति को हरी झंडी दी थी, तो फिर चुनाव आयोग ने फैसला सुनाते वक्त यह बात ध्यान में क्यों नहीं रखा?

• बता दें कि "शिवसेना' पर अधिकार को लेकर लेकर चुनाव आयोग ने अपने फैसले में कहा था कि उद्धव गुट ने 1999 के बाद शिवसेना में हुए संगठनात्मक फेरबदल के कागजात पेश नहीं किए थे। इसको लेकर परब ने 2013 और 2018 की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लिए गए फैसलों की वीडियो रिकॉर्डिंग पेश की। कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश डीवाय चंद्रचूड के उस फैसले का वीडियो भी दिखाया गया, जिसमें उन्होंने शिंदे गुट के मुख्य सचेतक भरत गोगावले की नियुक्ति को अवैध करार दिया था।• उद्धव के वकील रोहित शर्मा ने राजनीतिक पार्टी (शिवसेना) और विधान मंडल में अंतर को लेकर स्थिति स्पष्ट की। शर्मा ने कहा कि विधान मंडल का जन्म राजनीतिक पार्टी के भीतर ही होता है। जब कोई राजनीतिक दल चुनाव जीत जाता है तो उसके विधायकों की संख्या को सदन में विधान मंडल दल कहा जाता है। ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष ने फैसला सुनाते वक्त सिर्फ विधान मंडल के सदस्यों की संख्या को ध्यान में रखा, जबकि यह अधिकार एक राजनीतिक दल का था। नार्वेकर ने विधान मंडल को ही पार्टी मान लिया और अपना फैसला सुना दिया।

• शिवसेना (उद्धव) पक्ष प्रमुख ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर और मुख्यमंत्री को चुनौती देते हुए कहा कि नार्वेकर, शिंदे और मैं बगैर पुलिस सुरक्षा के जनता के बीच आते हैं, तो पता चल जाएगा कि जनता किसे दफनाएगी और किसे कुचलेगी। उन्होंने कहा कि हमने चुनाव आयोग में 19 लाख 39 हजार शपथ पत्र दिए। इसके बाद भी वह यह फैसला नहीं कर पाया कि शिवसेना पर असली हक किसका है?

• उद्धव ठाकरेः जब 2014 और 2019 में हमने लोकसभा चुनाव जीता था तो चुनाव आयोग ने मोदी सरकार को समर्थन देने के फैसले पर मुहर कैसे लगाई थी? यदि मैं शिवसेना पक्ष प्रमुख नहीं था, तो भाजपा ने लोकसभा चुनाव के बाद 2014 और 2019 में उनसे समर्थन क्यों मांगाॽ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा 2022 में महाराष्ट्र आए थे और उन्होंने कहा था कि देश में सिर्फ भाजपा ही एकमात्र पार्टी बचेगी। क्या चुनाव आयोग को ये बातें स्वीकार्य हैं। वहीं से यह साजिश शुरू हुई है। हम सुप्रीम कोर्ट गए हैं और शिंदे भी हाई कोर्ट गए हैं। अब वह समय गुजारना चाहते हैं। उस समय राज्यपाल ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था, अब मैं राज्यपाल से मांग कर रहा हूं कि विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ वह अविश्वास प्रस्ताव लाएं। हम आपका समर्थन करते हैं। लोकतंत्र में मतदाता ही सब कुछ तय करते हैं। इसलिए आज हम जनता की अदालत में आए हैं। 

मैंने कहां गलती की है, यह बता नहीं सके उद्धव-नार्वेकर

विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना (उद्धव) पक्ष प्रमुख द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों पर पलटवार किया। मुझे लग रहा था कि वे कोई बड़ी चूक उजागर करेंगे। लेकिन यह तो छोटी दशहरा रैली निकली। नार्वेकर ने कहा कि मैंने 10 जनवरी को विधायकों की अयोग्यता को लेकर जो फैसला दिया था, उसके 6 दिन बाद कुछ लोग समाज में गलतफहमी पैदा कर रहे हैं। मैं एक बार फिर बताना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी नहीं कहा कि भरत गोगावले की नियुक्ति अवैध है।

नार्वेकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मूल पार्टी निर्धारित करने के लिए कहा था जिसके अनुसार मैंने फैसला लिया। उन्हें लग रहा था कि उद्धव गुट ने जिस तरह से माहौल बनाया है और एक छोटी सी प्रेस कॉन्फ्रेंस को "जनता की अदालत" का नाम दे दिया उसमे कोई बड़ा खुलासा करेंगे लेकिन यह तो छोटी दशहरा रैली निकली। वहां पर सिर्फ राजनीतिक भाषण देखने को मिले। इसके आलावा उद्धव की इस रैली में संवैधानिक संस्थाओं के बारे में भी गलत शब्दों का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर किया गया।

नार्वेकर ने कहा कि उद्धव गुट ने राज्यपाल को निकम्मा और सुप्रीम कोर्ट के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर इन संवैधानिक संस्थाओं का अपमान किया है। उन्होंने कहा कि भले ही फैसला कुछ भी आया हो लेकिन संवैधानिक संस्थाओं के बारे में इस तरह की बयानबाजी लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। अगर यह बयानबाजी सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पदों पर रहने वाले लोगों के खिलाफ चलती रही तो फिर जनता इन संस्थाओं पर भरोसा नहीं करेगी।

नार्वेकर ने कहा कि उद्धव गुट के लोगों ने साल 2013 के संविधान के बारे में मेरे सामने बहस करने की बात कही है, लेकिन अनिल परब वह पत्र दिखा रहे हैं जिनको लेकर कोई ठोस जानकारी चुनाव आयोग और मेरे सामने पेश नहीं की गई। उन्होंने कहा कि जो लोग हमें संविधान का पाठ पढ़ा रहे हैं उनके बारे में आखिर में जनता फैसला करेगी कि उनके खिलाफ क्या फैसला लेना है।

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