डाक्टरों की परेशानी: मरीजों का इलाज करनेवाले रेजिडेंट डॉक्टर खुद बीमार

  • सरकारी मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट डॉक्टरों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ा
  • सेंट्रल मार्ड का राज्यपाल को सीधा पत्र

Bhaskar Hindi
Update: 2023-10-20 15:01 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों में मरीजों का इलाज करने वाले रेजिडेंट डॉक्टर ही खुद ही बीमार हैं। इन दिनों यह डॉक्टर मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। अतिरिक्त काम, सीनियर डॉक्टरों का शोषण, सीट छोड़ने पर 20 लाख रुपये के जुर्माने के नियमों से इन डॉक्टरों में तनाव बढ़ गया है। इस संबंध में राज्य के रेजिडेंट डॉक्टरों ने राज्यपाल को पत्र लिखा है।

राज्य के करीब 6,000 रेजिडेंट डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स (सेंट्रल मार्ड) ने सरकार को पत्र लिखकर अपनी समस्याओं से अवगत कई बार करा चुके है। इतना ही नहीं कुछ रेजिडेंट डॉक्टरों ने गुमनामी पत्र लिखकर वरिष्ठ डॉक्टरों से हो रहे शोषण स्व अवगत भी करा चुके है। सेंट्रल मार्ड के अध्यक्ष डॉ. अभिजीत हेलगे ने बताया कि रेजिडेंट डॉक्टरों को यह अपमान इसलिए सहना पड़ता है क्योंकि उनके ग्रेड प्रोफेसरों के हाथ में होते हैं। रेजिडेंट डॉक्टरों के बीच तनाव का एक अन्य कारण उनका अधिक काम करना भी है। रेजिडेंट डॉक्टर प्रति सप्ताह 100 से 120 घंटे काम करते हैं। कई बार तो 36 घंटे तक लगातार उन्हें काम करना पड़ता है। काम का और अपमान तनाव बढ़ता ही जा रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने भी सभी राज्यों को यूनिफॉर्म सेंट्रल रेजीडेंसी योजना लागू करने को कहा है। इसमें कहा गया है कि रेजिडेंट डॉक्टरों को प्रतिदिन 12 घंटे और सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम न करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। इसके अलावा प्रति सप्ताह एक दिन की छुट्टी का भी उल्लेख किया गया है। डॉ. अभिजीत ने बताया कि तीसरा अहम मुद्दा यह है कि नीट पीजी के बाद आवंटित होनेवाली सीट को तीन साल से पहले छोड़ने पर मेडिकल स्टूडेंट पर पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाता है जो स्टूडेंट के लिए बड़ा कष्टदायक है। डॉक्टरों का कहना है कि आर्थिक रूप से अक्षम छात्रों पर लगाए गए जुर्माने का दिमाग पर इतना असर होता है कि छात्र को लगता है कि अपनी सीट छोड़ने से बेहतर है कि अपनी जान दे दूं।

5 वर्षों में 11 मेडिकल स्टूडेंट ने की आत्महत्या : डॉ. अभिजीत ने बताया कि बीते 5 वर्षों में प्रदेश में 11 मेडिकल स्टूडेंट ने आत्महत्या की है। इसकी जानकारी स्वयं केंद्रीय सरकार ने लोकसभा में दी है। उन्होंने बताया कि सोलापुर के एक मेडिकल कॉलेज में 600 छात्रों पर हुए सर्वे में यह बात सामने आई कि करीब 25 फीसदी छात्र मानसिक तनाव में थे। जबकि लगभग 25 प्रतिशत छात्र समय-समय पर चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं से पीड़ित होते हैं।

मार्ड की राज्यपाल से मांग

- प्रत्येक महाविद्यालय में एक समिति का गठन किया जाए जिसमें डीन, मनोविज्ञान विभाग के साथ अन्य विभागों के प्रोफेसर एवं प्राध्यापक तथा मार्ड को सदस्य के रूप में शामिल किया जाए। इस समिति का उद्देश्य प्रत्येक विभाग में एक स्वस्थ कार्य संस्कृति का मूल्यांकन करना होगा। यदि कोई समस्या नजर आती है तो समिति उसे रोकने के लिए तत्काल कदम उठा सके।

- राज्य स्तर पर शिकायत प्रकोष्ठ बनाया जाए। इसमें चिकित्सा शिक्षा आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान निदेशालय के निदेशक, सेंट्रल मार्ड के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए।

- रेजिडेंट डॉक्टरों के वर्तमान कार्य घंटों को कम किया जाना चाहिए। प्रतिदिन 12 घंटे से अधिक काम न हो।

- यदि किसी स्टूडेंट को कॉलेज में प्रतिकूल माहौल के कारण अपनी सीट छोड़नी पड़ती है, तो उसका आवेदन सूना जाना चाहिए, उसकी जांच की जानी चाहिए और उस आधार पर उसे दंडित नहीं किया जाना चाहिए।

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