जीवनदान: दिल के ट्यूमर की सर्जरी, भारत में मिला दुर्लभ ब्लड ग्रुप

  • पूरे विश्व में इस ब्लड ग्रुप के सिर्फ 9 ही डोनर
  • डॉक्टर की तरकीब ने मरीज की बचाई जान

Bhaskar Hindi
Update: 2023-10-27 13:22 GMT

मोफीद खान, मुंबई । दिल में ट्यूमर से पीड़ित यवतमाल के एक वकील की बायपास सर्जरी के एक दिन पहले ही मुंबई के डॉक्टर उस समय चौंक उठे जब मरीज का खून किसी से मेल ही नहीं खा रहा था। इस सर्जरी के लिए लगनेवाले 3 यूनिट खून के लिए अस्पताल ने उसके परिवार सहित 50 से अधिक रक्तदाताओं के खून की जांच तक कर दी लेकिन किसी का खून मरीज के खून से मेल ही नहीं खा रहा था। आखिरकार लंदन के अंतरराष्ट्रीय ब्लड ग्रुप रेफरेन्स लैबोरेटरी ने मरीज का ब्लड ग्रुप सबसे दुर्लभ होने का निदान किया। इस ब्लड ग्रुप का नाम गेरबिच फेनोटाइप बताया गया। पूरे विश्व में इस ब्लड ग्रुप के सिर्फ 9 ही डोनर है जबकि भारत में यह पहला व्यक्ति पाया गया है। अंत में डॉक्टरों ने इसी मरीज के खून के सहारे इस सर्जरी को सफल कर मरीज को नया जीवनदान दिया।

नागपुर के यवतमाल जिले में रहनेवाले और पेशे से वकील राजेश अग्रवाल ने सीने में दर्द की शिकायत पर स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया। वहां जांच के दौरान हृदय में मांस का टुकड़ा होने की बात सामने आयी। इसे लेकर मरीज ने लीलावती अस्पताल के प्रसिद्ध कार्डियोवैस्क्युलर और थोरेसिक सर्जन डॉ. पवन कुमार से संपर्क किया। डॉ. पवन कुमार के कहने पर वे इलाज के लिए मुंबई आ गए। डॉ. पवन कुमार ने बताया कि यहां जांच के दौरान मरीज के ह्रदय में गांठ पायी गई। इसकी गंभीरता को देखते हुए डॉक्टर ने फौरन सर्जरी करने का निर्णय लिया गया।

खून जांच में ब्लड ग्रुप दुर्लभ पाया गया : डॉ. पवन कुमार ने बताया कि सर्जरी से पहले ऑपेरशन के दौरान लगनेवाले खून के लिए जब मरीज के खून की जांच अन्य रक्तदाताओं से की गई तो मरीज का खून किसी से मेल नहीं खा रहा था। इसकी जानकारी मिलने के बाद सर्जरी को उस समय तक टाल दिया गया जब तक मरीज के लिए 3 यूनिट खून नहीं मिल पाते। उन्होंने बताया कि इम्युनो-हेमाटोलॉजिकल अध्यन में मरीज का ब्लड ग्रुप एंटीबॉडी दुर्लभ पाया गया।

मरीज का खून ही आया उसके काम : डॉ. पवन ने बताया कि चूंकि मरीज का ब्लड ग्रुप दुर्लभ था और इसके रक्तदाता विदेशों में होने से उन्हें यहां बुलाना संभव नहीं था। इसलिए हमने सर्जरी के लिए लगनेवाला खून मरीज का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया। इसलिए हमने चरणबद्ध तरीके से उसके शरीर से 3 यूनिट रक्त इकट्ठा किए और फिर सर्जरी के दौरान और सर्जरी के बाद मरीज को उसी का ही खून उसे दिया गया।

दूसरे व्यक्ति का खून जान के लिए बन सकता था जोखिम : डॉ. पवन कुमार ने बताया कि मरीज के ट्यूमर से इम्यून कॉम्प्लेक्स जारी हुआ होगा जिससे ब्लड में एलो ऐंटीबॉडी बन गई। अस्पताल की ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन कंसलटेंट डॉ. रूही मेहरा ने बताया कि 45 ब्लड ग्रुप सिस्टम होता है। इसमें से 43 ब्लड ग्रुप सिस्टम माइनर यानी दुर्लभ होते है। इस मरीज के लाल रक्त कोशिकाओं में एंटीजन जीई-2 और 3 नहीं थे। मरीज के खून में जीई-2 ऐंटीबॉडी विकसित हो गया था। उन्होंने बताया कि अगर मरीज को किसी अन्य व्यक्ति का जीई-2 एंटीजन युक्त वाला खून दिया गया होता तो मरीज की जान को जोखिम हो सकता था ।

Tags:    

Similar News