बॉम्बे हाईकोर्ट: भारत सीरीज वाहन पंजीकरण पर राज्य के परिवहन आयुक्त का सर्कुलर किया रद्द
- भारत सीरीज (बीएच) वाहन पंजीकरण मामला
- कानूनी अधिकार क्षेत्र के बिना सर्कुलर जारी करने का दावा
- राज्य के परिवहन आयुक्त द्वारा जारी सर्कुलर को रद्द किया
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि भारत सीरीज (बीएच) में वाहन के पंजीकरण के संबंध में राज्य के परिवहन आयुक्त द्वारा सर्कुलर जारी करना अनधिकृत और अवैध है। अदालत ने बीएच में वाहन के पंजीकरण के संबंध में जारी सर्कुलर को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ के समक्ष महेंद्र पाटिल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उन्होंने राज्य परिवहन आयुक्त कार्यालय में अपना आधिकारिक पहचान पत्र प्रस्तुत कर केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम में उल्लिखित आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भारत सीरीज (बीएच) में कार के पंजीकरण का अनुरोध किया। उनके आवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया गया कि वह फरवरी 2024 में जारी परिवहन आयुक्त के सर्कुलर में सूचीबद्ध अतिरिक्त प्रतिबंधों को पूरा नहीं कर सके। इन प्रतिबंधों में आवेदक के कार्यालय स्थान, रहने की अवधि और अन्य राज्यों में भुगतान की जानकारी का संकेत देने वाला प्रमाण पत्र प्रदान करना शामिल था।
जबकि परिवहन आयुक्त के पास ऐसी सीमाओं को लागू करने का अधिकार नहीं है, जो केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए दिशानिर्देशों के विपरीत हैं। याचिका में सर्कुलर को रद्द कर उनकी कार को बीएच सीरीज के तहत पंजीकृत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया। खंडपीठ ने कहा कि सर्कुलर परिवहन आयुक्त की क्षमता से बाहर है और स्थापित कानूनी मानदंडों का उल्लंघन है। अदालत ने आदेश दिया कि सर्कुलर को रद्द किया जाए और पाटिल के वाहन को एक सप्ताह के भीतर बीएच सीरीज के तहत पंजीकृत किया जाएगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि परिवहन आयुक्त का कार्यालय केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम में केंद्र सरकार द्वारा उल्लिखित नियमों का खंडन करने वाली आवश्यकताओं को एकतरफा लागू नहीं कर सकता है।
अदालत ने स्थापित मानदंडों का पालन करने और उच्च विधायी संस्थाओं के अधिकार पर किसी भी उल्लंघन से बचने की आवश्यकता पर जोर दिया। परिवहन आयुक्त कार्यालय ने आय सृजन और बीएच सीरीज पंजीकरण प्रक्रिया के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए सर्कुलर को उचित ठहराया था, वहीं हाई कोर्ट ने कानूनी अनुरूपता और कानून के शासन का सम्मान करने पर जोर देते हुए अपनी स्थिति बरकरार रखी थी।