बॉम्बे हाईकोर्ट: नांदेड़ सरकारी अस्पताल में मरीजों की मौत मामले में राज्य सरकार को फटकार
- बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार
- कहा- हमारे ऊपर बोझ है, कहकर नहीं बच सकते
- राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव से हलफनामा दाखिल मांगा जवाब
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाईकोर्ट नांदेड़ और छत्रपति संभाजी नगर के सरकारी अस्पतालों में हाल ही में हुए मरीजों की मौत बॉम्बे हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. अदालत ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा है कि महाराष्ट्र सरकार सरकारी अस्पतालों में मरीजों की हुई मौत से बच नहीं सकती है. दोनों शहरों में 30 से अधिक मरीजों ने जान गंवाई है। अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि आप ये कहकर बच नहीं सकते हैं कि हमारे ऊपर बोझ है. आप एक राज्य हैं। आप अपनी जिम्मेदारियों को प्राइवेट प्लेयर को नहीं सौंप सकते हैं। इसे कैसे मजबूत करें? इस बात की जानकारी पेपर में मौजूद हैं। अगर वह जमीन तक नहीं पहुंच रहा है, तो फिर कोई मतलब नहीं हुआ।
खंडपीठ ने मेडिसिन प्रोक्योरमेंट बोर्ड के सीईओ की अनुपलब्धता पर भी सवाल उठाया. अदालत ने कहा कि दवा खरीद बोर्ड का एक पूर्णकालिक और स्वतंत्र सीईओ होना चाहिए. साथ ही अदालत ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के मुख्य सचिव को हालतनामा दायर कर यह बताने का निर्देश दिया है कि सरकारी अस्पताल में लिए कितने डॉक्टरों और कर्मचारियों की नियुक्ति निश्चित की गई है और वर्तमान डॉक्टर और कर्मचारी में कितने कार्यरत हैं।
अदालत की तरफ से यह फटकार तब लगाई गई है, जब सरकार ने सरकारी अस्पताल में दवाओं और बेड आदि के कम होने की बात कही। राज्य के महाधिवक्ता डॉ वीरेंद्र सराफ ने कहा कि हाल ही में अस्पताल में हुई मौतों की वजह बड़े पैमाने पर हुई लापरवाही नहीं लगती है. यह दुख की बात है कि यहां जो कुछ हुआ और फिर लोगों की मौत हुई।
महाधिवक्ता ने कहा कि अधिकांश मरीजों को अंतिम चरण में सरकारी अस्पताल लाया गया था। सरकारी अस्पतालों बहुत दबाव है और कर्मचारियों की कमी है और उन मौतों के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। महाराष्ट्र सरकार मरीजों की मौत को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की तरफ से नोटिस भी मिला है. चार हफ्ते में सरकार से जवाब भी मांगा गया है. डॉक्टरों का कहना था कि इन मौतों की वजह बेड, स्टाफ और जरूरी दवाओं की कमी है. हालांकि अदालत ने साफ कर दिया कि इन वजहों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार से इस मामले पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है. सरकार से अदालत ने राज्य में स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाली राशि का ब्यौरा भी मांगा है. 30 सितंबर से 3 अक्टूबर तक 37 मरीजों की मौत हो गई। जबकि 2 से 3 अक्टूबर तक 221 नए मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। फिलहाल अस्पताल में 823 मरीजों का इलाज चल रहा है।