बॉम्बे हाईकोर्ट: मराठा समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर जवाब तलब

  • मराठों के लिए 10 फीसदी आरक्षण के 20 फरवरी को पास सरकारी विधेयक रद्द करने का अनुरोध
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर राज्य सरकार से मांगा जवाब
  • मराठा समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ दायर याचिका

Bhaskar Hindi
Update: 2024-03-07 15:26 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार से जवाब जवाब मांगा है। अदालत ने इस मामले में चार हस्तक्षेप याचिका दायर करने वालों को भी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है।जनहित याचिका दावा किया गया है कि मराठा समाज को 10 फीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के अधिनियम को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष गुरुवार को भाऊ साहेब पवार द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान मराठा समाज की ओर से चार हस्तक्षेप याचिका दायर की गई। खंडपीठ ने जनहित याचिका में राज्य सरकार समेत पार्टी बनाए गए सभी लोगों को हलफनामा दायर कर जवाब देने का निर्देश दिया है। जनहित याचिका में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम 2024 को रद्द करने के अनुरोध किया गया है। यह आरक्षण अधिनियम राज्य में मराठ समाज को 10 फीसदी आरक्षण देता है। सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुनील शुक्रे के नेतृत्व में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएससीबीसी) ने हाल ही में मराठा समाज के लिए आरक्षण के पक्ष में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। राज्य विधानसभा ने 20 फरवरी को इस सिफारिश को स्वीकार करते हुए मराठ समाज के लिए 10 फीसदी आरक्षण का विधेयक पेश किया गया था और विधानसभा ने उसे मंजूरी दे दी थी।

याचिकाकर्ता के वकील राकेश पांडे ने दलील दी कि महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम 2024 सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी फैसले के खिलाफ है, क्योंकि यह आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन करता है। साथ ही यह आरक्षण मराठा कार्यकर्ता मनोज जारांगे-पाटिल के दबाव के कारण दिया गया था। मराठा समाज को आरक्षण प्रदान करने के लिए कोई बाध्यकारी कारण नहीं हैं। राज्य ने मनोज जरांगे-पाटिल के विरोध और आंदोलन के दबाव में आने के बाद ही मराठा समाज को आरक्षण प्रदान किया है। मराठों के लिए आरक्षण की सिफारिश आरक्षण के लिए निर्धारित सीमा से अधिक करके कानून का उल्लंघन करती है। मराठा समाज को आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में दो अन्य जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर की गई हैं।

इनमें से एक जनहित याचिका पिछड़ा वर्ग कल्याण समुदाय के अध्यक्ष मंगेश सासाने द्वारा दायर की गई है। ससाने का दावा है कि मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में शामिल करने का महाराष्ट्र सरकार का फैसला ओबीसी के लिए मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर देगा। वकील आशीष मिश्रा द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका में हितों के टकराव का आरोप लगाते हुए महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एमएससीबीसी) के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुनील बी. शुक्रे समेत अन्य सदस्यों की नियुक्ति को चुनौती दी गई है।

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