बॉम्बे हाईकोर्ट: 280 परिवारों को राहत, अनधिकृत वेबसाइट्स होंगी बंद और कोचर दंपति की गिरफ्तारी पर सुनवाई
- रेलवे के डीआरएम को कमेटी बना कर झोपड़ाधारकों के मामले को सुलझाने का निर्देश
- सिपाही की पत्नी को जमानत, एंटॉप हिल में बिना सिर के मिली थी व्यक्ति की लाश
- ऑनलाइन सेवाएं देने वाली अनधिकृत वेबसाइटों को हटाने का हाई कोर्ट का आदेश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। दहिसर में पश्चिम रेलवे की जमीन पर बसे 280 परिवारों को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने रेलवे के उनके झोपड़े तोड़ने के लिए जारी नोटिस पर रोक लगा दिया है। साथ ही अदालत ने पश्चिम रेलवे के डीआरएम को एक कमेटी बना कर झोपड़ाधारकों के मामले की जांच कर 10 दिनों में रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष शुक्रवार को दहिसर (प.) के अरुल मरिअम्मन रहिवासी सेवा सोसायटी की ओर से वकील सुनील कुमार और हर्ष पाटिल की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील सुनील कुमार ने दलील दी कि दहिसर (प.) के इंदिरा नगर में रेलवे की जमीन पर 50 साल से 280 परिवार के लोग रहते हैं। 30 नवंबर 2006 को मुंबई अर्बन ट्रांसपोर्ट पोर्जेक्ट (एमयूटीपी) के तहत परिवार इंदिरा नगर के परिवरों का सर्वे हुआ था। इसके बाद उनके झोपड़ों को तोड़ दिया गया था। इस दौरान परिवारों का पुनर्वसन नहीं किया गया, तो वे परिवार दोबारा इंदिरा नगर में आ कर रहने लगे। पिछले सात साल से यह परिवार बिना लाइट पानी के यहां रह रहे हैं। अब एक बार फिर रेलवे ने उनके झोपड़े तोड़ने के लिए नोटिस भेजा है। सभी झोपड़ा धारक एसआरए की योजनाओं के तहत पात्र हैं। जनहित याचिका में उनका पुनर्वसन करने के बाद ही झोपड़े को तोड़ने का अनुरोझ किया गया है। खंडपीठ ने इंदिरा नगर के रहिवासियों को राहत देते हुए रेलवे की तोड़क कार्रवाई पर रोक लगा दिया और रेलवे के डीआरएम को एक कमेटी बना कर मामले की जांच का आदेश दिया है। अदालत ने डीआरएम को 10 दिनों में कमेटी को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।
कोचर दंपति की गिरफ्तारी थी अवैध, याचिका सुनवाई के दौरान दावा
आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की गिरफ्तारी मनमानी और अवैध थी. वे सीबीआई की जांच में पूरी तरह सहयोग कर रहे थे। बॉम्बे हाई कोर्ट में कोचर दंपत्ति की एफआईआर रद्द करने और स्थाई जमानत की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह दलील दी। इस मामले में सुनवाई जारी है। अगली सुनवाई 22 जनवरी को रखी गई है। न्यायमूर्ति लेना अनुजा प्रभुदेसाई और न्यायमूर्ति बोरकर की खंडपीठ के समक्ष शुक्रवार को कोचर दंपति की याचिका पर सुनवाई हुई। वरिष्ठ वकील अमित देसाई ने दलील दी कि चंदा कोचर को गिरफ्तार करते समय कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था. महिला पुलिस की अनुपस्थिति में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. जबकि सूर्योदय या सूर्यास्त के बाद किसी भी महिला को गिरफ्तार करने के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक होती है। साल 2012 में आईसीआईसीआई बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3250 करोड़ का लोन दिया था. इसमें चंदा के पति दीपक कोचर की 50 फीसदी हिस्सेदारी थी. खंडपीठ ने कोचर के वकील देसाई से कहा कि इस मामले में अदालत ने पहले ही फैसला सुना चुका है। इसकी के आधार पर उन्हें पिछले साल 9 जनवरी को अंतरिम जमानत दी गई थी। इसमें कुछ और तथ्य उनके पास दलील के लिए है, तो वह पेश करें। सीबीआई ने 24 दिसंबर 2022 को कोचर दंपति को गिरफ्तार किया था. सीबीआई की ओर से पेश वकील कुलदीप पाटिल ने कोचर दंपति की याचिका का विरोध किया।
प्रेमी की हत्या में सिपाही की पत्नी को बॉम्बे हाई कोर्ट से मिली जमानत
बॉम्बे हाई कोर्ट से प्रेमी की हत्या में सिपाही की पत्नी को जमानत मिल गई। साल 2021 में एंटॉप हिल में मृतक की बिना सिर के लाश मिली थी। इस मामले में मुख्य आरोपी सिपाही शिवशंकर गायकवाड़ है, जिसने अपनी जमानत याचिका वापस ले लिया। न्यायमूर्ति एन.जे.जमादार की एकलपीठ के समक्ष वकील ओंकार चितले की ओर से मोनाली शिवशंकर गायकवाड़ की दायर जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। जमानत याचिका में दावा किया गया कि सोलापुर के दादा जगदाले की 29 सितंबर 2021 को एंटॉप हिल में बिना सिर के जली हुई हालत में लाश मिली थी। मृतक की पहचान याचिकाकर्ता के बचपन के साथी दादा जगदाले के रूप में हुई। आरोप है कि याचिकार्ता के बुलाने पर उसका दोस्त जगदाले मुंबई आया था। उसकी हत्या कर दी गयी। जगदाले की हत्या का मुख्य आरोप याचिकाकर्ता और उसके पति शिवशंकर गायकवाड़ पर है। एंटॉप हिल पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर सबूतों के आधार पर सिपाही गायकवाड़ और उसकी पत्नी मोलानी को गिरफ्तार किया। पीठ ने पाया कि पुलिस ने सिपाही की पत्नी मोलानी का बयान दर्ज नहीं किया था। वह अपने दोस्त जगदाले को बचाने में घायल हो गयी थी। घटना के बाद उन्हें सदमे की स्थिति में पाया गया था। पड़ोसियों ने यह भी कहा है कि घटना के दिन उन्होंने चिल्लाने की आवाज सुनी थी। पीठ ने परिस्थिति जन्य सबूतों को देखते हुए याचिकाकर्ता को जमानत दे दी।
ऑनलाइन सेवाएं देने वाली अनधिकृत वेबसाइटों को हटाने का हाई कोर्ट का आदेश
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जॉन डो आदेश पारित कर पैन कार्ड से संबंधित सेवाएं ऑनलाइन प्रदान करने वाली अनधिकृत वेबसाइटों को हटाने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने शहर के संबंधित पुलिस स्टेशनों को आदेश का पालन करने के लिए यूटीआईआईटीएसएल की सहायता करने का भी निर्देश दिया। जॉन डो ऑर्डर किसी व्यक्ति या संस्था को किसी अज्ञात पार्टी या पार्टियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की अनुमति देता है। इस आदेश का उपयोग तब किया जाता है, जब मुकदमा दायर करने वाले व्यक्ति या इकाई की पहचान कानूनी कार्रवाई के समय ज्ञात नहीं होती है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे की एकलपीठ ने सरकार द्वारा अधिकृत यूटीआई इंफ्रास्ट्रक्चर टेक्नोलॉजी एंड सर्विसेज लिमिटेड (यूटीआईआईटीएसएल) की ओर से वकील आनंद मोहन की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। यूटीआईआईटीएसएल ने इस पर तत्काल आदेश देने का अनुरोध करते हुए कहा कि उनका काम राष्ट्रीय महत्व का है। पीठ प्रतिवादी वेबसाइटों को सुने बिना तत्काल आदेश पारित करने पर सहमत हो गया। पीठ ने कहा कि आवेदन में प्रदान की गई आवश्यक जानकारी पर विचार करने पर यूटीआईआईटीएसएल सेवा के बिना भी एक अंतरिम एकपक्षीय आदेश का हकदार है, क्योंकि सभी प्रतिवादियों को ट्रैक करना और उन पर सेवा लागू करना असंभव है। पीठ ने कंपनियों को आपत्तिजनक वेबसाइटों को हटाने का आदेश दिया। याचिका में दावा किया गया है कि प्रतिवादी-कंपनियां पैन कार्ड जारी करने से संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए यूटीआईआईटीएसएल द्वारा अधिकृत होने के लिए अपनी वेबसाइटों का झूठा प्रतिनिधित्व कर रही थीं। यूटीआईआईटीएसएल द्वारा अपनी याचिका में पंजीकृत चिह्न को कंपनियों के अपना बताने से रोकने का अनुरोध किया गया था। यूटीआईआईटीएसएल ने दावा किया कि उसे 2003 से आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और ड्राइविंग लाइसेंस आदि जैसे पहचान दस्तावेज जारी करने समेत पैन कार्ड से संबंधित सेवाओं के लिए आयकर विभाग द्वारा अधिकृत किया गया था। उसने दावा किया कि उसकी सेवा विशिष्ट है और यह मार्च 2024 तक वैध है।