बॉम्बे हाईकोर्ट: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लुक आउट सर्कुलर जारी करने का अधिकार नहीं

  • अदालत ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के अनुरोध पर जारी सभी एलओसी को किया रद्द
  • गृह मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय ज्ञापन की वैधता को रखा बरकरार

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-23 15:55 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन (ओएम) के तहत भारतीय नागरिकों और विदेशियों के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी करने की शक्ति नहीं है। अदालत ने बैंकों के अनुरोध पर कर्जदारों को जारी सभी एलओसी को रद्द कर दिया। याचिकाएं एक साल पहले फैसले के लिए सुरक्षित रखी गई थीं और मंगलवार को फैसला सुनाया गया। न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्जदार लोगों को विदेश यात्रा से रोकने के लिए जारी एलओसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। अदालत कहा कि केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन (ओएम) संविधान के दायरे से बाहर नहीं थे, लेकिन कर्जदारों के खिलाफ एलओसी जारी करने के लिए बैंकों के प्रबंधकों को अधिकार देना मनमाना था। खंडपीठ ने बैंकों के अनुरोध पर जारी किए गए सभी एलओसी को रद्द कर दिया। वर्तमान आदेश किसी ट्रिब्यूनल या आपराधिक अदालत द्वारा जारी किए गए किसी भी मौजूदा आदेश को प्रभावित नहीं करता है, जो व्यक्तियों (बैंक के कर्जदारों) को विदेश यात्रा से रोकता है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आव्रजन ब्यूरो द्वारा जारी एलओसी किसी भी बंदरगाह पर आव्रजन अधिकारियों के व्यक्तियों (कर्जदारों) को भारत से बाहर यात्रा करने से रोकने की अनुमति देती है। एलओसी परिपत्रों या ओएम की एक श्रृंखला के अनुसार जारी किए गए थे, जिनमें से पहला 27 अक्टूबर 2010 को जारी किया गया था। परिपत्रों या ओएम में समय-समय पर संशोधन किया गया। ऐसा ही एक संशोधन सितंबर 2018 में किया गया था, जिसने भारत के आर्थिक हित में एलओसी जारी करने के लिए एक नया आधार पेश किया। यह अनिवार्य रूप से व्यक्तियों को विदेश यात्रा करने से रोकता है।

अक्टूबर 2018 में एक और संशोधन में एक और खंड पेश किया गया, जिसमें कहा गया कि भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष और अन्य सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी आव्रजन अधिकारियों से एलओसी जारी करने का अनुरोध कर सकते हैं। सभी ओएम और उसके बाद के संशोधनों को हाई कोर्ट के समक्ष कई याचिकाओं में चुनौती दी गई थी। याचिकाओं में दावा किया गया कि परिपत्र विशेष रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार को कम करता है। भारत के आर्थिक हित शब्द की तुलना किसी भी बैंक के वित्तीय हित से नहीं की जा सकती। किसी भी बैंक की वित्तीय चिंताएं, चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र की हों या अन्य भारत के आर्थिक हितों के अनुरूप नहीं हैं।

गृह मंत्रालय (एमएचए) ने बताया कि एलओसी के लिए अनुरोध करते समय प्रत्येक बैंक से अपने कार्यों को उचित ठहराने की अपेक्षा की जाती है। ओएम अवधारणा में व्यापक हैं और देश की सुरक्षा, संप्रभुता, आतंकवाद और अन्य राष्ट्रीय हितों से संबंधित चिंताओं को संबोधित करते हैं। व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करना कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा नहीं किया जा सकता है। ओएम बिल्कुल कानून द्वारा स्थापित ऐसी प्रक्रिया है, तो वे मौलिक अधिकारों का व्यापक उल्लंघन नहीं करते हैं।

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