बॉम्बे हाईकोर्ट: मुंबई में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका को सुमोटो में बदला
- अदालत ने मुंबई समेत शहरों में वायु प्रदूषण के बढ़ रहे स्तर पर जताई चिंता
- केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य सरकार समेत मुंबई महानगर पालिकाओं को पार्टी बनाने का निर्देश
- 6 नवंबर को मामले पर अगली सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर स्वत: संज्ञान (सुमोटो) में लिया है। अदालत ने इसको लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते कहा कि केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य सरकार और मुंबई समेत सभी महानगर पालिका समेत सभी महानगर पालिकाओं को पक्ष बनाया जाना चाहिए। हम इस पर एक विस्तृत आदेश पारित करेंगे। हम मुंबई के वायु प्रदूषण पर स्वत: संज्ञान ले रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डाक्टर की खंडपीठ के समक्ष मंगलवार को अमर टिके, आनंद झा और संजय सुर्वे की ओर से वकील प्रशांत पांडे और वकील दिनेश जाधवानी की दायर जनहित याचिका सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि हम मुंबई में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को स्वत: संज्ञान भी ले रहे हैं। इन अधिकारियों द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं? वायु गुणपत्ता सूचकांक (एक्यूआई) हर जगह खराब हो रहा है, एक भी क्षेत्र नहीं बचा है। अदालत ने मामले की सुनवाई 6 नवंबर रखा और कहा कि वह उस दिन व्यापक निर्देश जारी करेगी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को याचिका में संशोधन करने की भी अनुमति दी है।
मुंबई में अत्यधिक वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने वाली जनहित याचिका में कहा गया है कि 1 करोड़ 70 लाख लोगों के मुंबई में हाल के दिनों बीमार पड़ने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि है। कई बार फेफड़ों के संक्रमण और खांसी से परेशान रहते हैं। याचिका में पिछले दशक के सिविक गार्डन और पेड़ विभाग के कामकाज की जांच के निर्देश देने की मांग की गई है। इसमें उनके खातों, जनशक्ति की उपलब्धता और पिछले 10 वर्षों में वृक्षारोपण के विवरण का ऑडिट करना शामिल है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर को लेकर सरकारी पैनल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु संकट इतनी तेजी से बढ़ रहा है, जितना पहले कभी नहीं था। वनों की कटाई, सूखे से लेकर वायु प्रदूषण और प्लास्टिक कचरे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाले कई कारक हैं।
वकील प्रशांत पांडे कहा कि मुंबई महानगरपालिका 15000 रुपए प्रति पेड़ की औसत से खरीद कर पेड़ लगाने का दावा करती है। इसके लिए 15 करोड़ रुपए आवंटित होने और 10000 पौधे लगाने पर खर्च करने का दावा किया गया है। जबकि धरातल पर सच्चाई इसके विपरीत है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार भी शामिल है। याचिका में शहर में वायु प्रदूषण की दुर्दशा को उजागर करने के लिए विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों का हवाला दिया गया है।