बॉम्बे हाईकोर्ट: झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग शतरंज की बिसात पर मोहरे नहीं, बेदखली का नोटिस न करें जारी

  • अदालत ने एसआरए को एक सप्ताह में झोपड़पट्टी वासियों को बेदखली का नोटिस नहीं जारी करने का कड़ा निर्देश
  • प्रभावित गरीब व्यक्तियों के लिए अदालतों में पहुंचना संभव नहीं

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-23 15:47 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने झोपड़पट्टी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) से कहा कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग शतरंज की बिसात पर मोहरे नहीं हैं। वह भी इंसान हैं और उनके साथ शतरंज की बिसात पर मोहरों की तरह व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने एसआरए को कड़ा निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह में बेदखली नोटिस जारी न करें, क्योंकि प्रभावित गरीब व्यक्तियों के लिए जल्द अदालतों में पहुंचना संभव नहीं है। न्यायमूर्ति जी.एस.पटेल और न्यायमूर्ति कमल खट्टा की खंडपीठ के समक्ष दायर तीनों याचिकाओं में महाराष्ट्र झोपड़पट्टी क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम 1971 की धारा 33 और 38 के तहत 7 फरवरी को जारी नोटिस का विरोध किया गया था, जिसमें उन्हें सात दिनों के भीतर घर खाली करने के लिए कहा गया था। तीनों मामले मूल रूप से एसआरए के सर्वोच्च शिकायत निवारण समिति (एजीआरसी) के समक्ष दायर की गई थी, लेकिन यह अनुपलब्ध था। खंडपीठ ने एजीआरसी सदस्यों को यह भी चेतावनी दी कि आदेश के पालन में विफलता के कारण उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जा सकती है। अदालत ने जारी नोटिस पर रोक लगा दी।

खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि भले ही कोई कानून 24 घंटे, 36 घंटे या 72 घंटे की अवधि निर्धारित करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि प्राधिकरण को खाली करने के लिए केवल यह अवधि देनी होगी। अब हम हर जगह सभी प्राधिकारियों पर लागू एक निर्देश जारी करते हैं कि बेदखली के लिए केवल घंटों का उल्लेख करते हुए कोई नोटिस नहीं दिया जाएगा। एक विशिष्ट तारीख का उल्लेख किया जाना चाहिए और वह तारीख केवल एक सप्ताह का भी नहीं होना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि हमारे संविधान के तहत न्याय का मतलब एक प्रशासनिक प्राधिकारी से उचित व्यवहार की उम्मीद करने का अधिकार होना चाहिए। यदि यह नहीं होता है, तो निवारण के लिए अदालत से संपर्क करने का अधिकार होना चाहिए। न्याय एक खोखला वादा नहीं हो सकता है।

खंडपीठ ने कहा कि हम यह समझने में असफल हैं कि जिस एसआरए पर झोपड़पट्टी वासियों के कल्याण की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, वह 18 या 20 वर्षों के बाद यह निर्णय ले सकता है कि पूरे परिवारों को घरों को खाली करने के लिए सात दिन पर्याप्त हैं। ये इंसान हैं और उनके परिवार हैं। वे शतरंज की बिसात पर रखे मोहरे नहीं हैं, जिन्हें इधर-उधर घुमाया जा सके या मिटाया जा सके। अदालत एक अपील पर सुनवाई की प्रक्रिया में थी, जो एक खंडपीठ को सौंपी गई दो अन्य याचिकाओं के साथ-साथ एकल-न्यायाधीश पीठ का काम था।

Tags:    

Similar News