बॉम्बे हाईकोर्ट: 7 महीने की बच्ची को गोद लेने वाले माता-पिता को नहीं मिली राहत, अदालत का इनकार

  • अदालत ने बच्ची को गोद लेने वाले माता-पिता को देने से किया इनकार
  • अदालत ने कहा-जैविक मां की राय लेना जरूरी
  • माता-पिता को हर दिन 3 से 6 बजे तक बच्ची से मिलने की मिली इजाजत

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-16 15:23 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. बच्चे की चाहत में तेलंगाना की एक दंपति मुंबई में बच्चों की खरीद-फरोख्त करने वाले गिरोह के चंगुल में फंस गए। उन्हें दो दिन की एक बच्ची को गोद लेना भारी पड़ा। अब 7 महीने की हो गई बच्ची से भावनात्मक लगाव हो जाने के कारण वे उसे पाने के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। अदालत से उन्हें राहत नहीं मिली। अदालत ने गुरुवार को दंपति की याचिका पर बच्ची को सौंपने के अनुरोध को जैविक मां मिलने पर राय जानने से पहले तत्काल सौंपने से मना कर दिया। हालांकि अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 12 जून को होने तक दंपति को बच्ची से हर रोज दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक मिलने की इजाजत दी है।

न्यायमूर्ति संदीप वी.मार्ने और न्यायमूर्ति डॉ.नीला केदार गोखले की अवकाशकालीन खंडपीठ के समक्ष गुरुवार को तेलंगाना के हैदराबाद निवासी दंपति की ओर से वकील हर्षिल शाह और वकील सौरव मेहता की बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की ओर से पेश वकील ने बच्ची को गोद लेने वाली दंपति को बच्ची देने का विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच बच्ची के जैविक मां की खोजबीन कर रही है। सीडब्ल्यूसी ने बच्ची को महालक्ष्मी की सामाजिक संस्था बाल आशा ट्रस्ट को सौंपा है।

याचिकाकर्ता के वकील हर्षिल शाह ने दलील दी कि क्राइम ब्रांच ने जब गोद लेने वाले दंपति के पास से बच्ची को लेकर आए, तो उस समय से लेकर अब तक पुलिस बच्ची की जैविक मां का पता नहीं लगा सकी है। ऐसे में बच्ची को याचिकाकर्ता को सौंप दिया जाना चाहिए। खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद बच्ची को गोद लेने वाली दंपति को बच्ची सौंपने से यह कहते हुए मना कर दिया कि बच्ची की जैविक मां को मिलना और उसकी राय जानना जरूरी है। अदालत ने पुलिस को बच्ची की जैविक मां का पता लगाने का निर्देश दिया है।

क्या है पूरा मामला

क्राइम ब्रांच की यूनिट दो ने इस साल 27 अप्रैल को डॉ.संजय खंदारे और एक दर्जन महिला समेत 14 आरोपियों को गिरफ्तार किया। उनके द्वारा गरीब माता-पिता को पैसे का लालच देकर उनके बच्चों के उन दंपतियों को अवैध रूप से पैसे लेकर सौंप (गोद) दिया, जिनके बच्चे नहीं होने के कारण गोद लेने के इच्छुक थे। हालांकि याचिकाकर्ता समेत कई दंपति को बच्चों को कानूनी रूप से गोद देने का झांसा दिया गया।


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