हाईकोर्ट: सार्वजनिक स्थानों के पेड़ों पर कृत्रिम रोशनी लगाने पर सरकार और मनपा को नोटिस

  • जनहित याचिका पर मांगा प्रशासन से जवाब
  • बढ़ते शहरीकरण के कारण महानगरपालिका क्षेत्र में पेड़ों की संख्या घट रही
  • अदालत ने गर्भवती लड़की को दी मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में उपचार की अनुमति

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-10 14:38 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. सार्वजनिक स्थानों के पेड़ों पर साइनेज बोर्ड, कृत्रिम रोशनी लगाने के लिए बिजली के तार लपेटे जाते हैं, जिससे पेड़ों को नुकसान पहुंचता है। इसको लेकर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर है। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य सरकार और तीन महानगरपालिका को जवाब दायर करने का निर्देश दिया है। बढ़ते शहरीकरण के कारण महानगरपालिका क्षेत्र में पेड़ों की संख्या घट रही है। ऐसे मंल जो पेड़ सड़कों या सार्वजनिक ठिकानों पर खड़े हैं, उन पर नियोन लाइटिंग, साइनेज बोर्ड समेत बिजली की विभिन्न सजावटी बत्तियां लगाई जाती हैं। इसके खिलाफ पर्यावरण कार्यकर्ता रोहित मनोहर जोशी ने जनहित याचिका दायर किया है। इस याचिका पर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ एस.डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को सुनवाई हुई। इसमें याचिकाकर्ता रोहित जोशी की ओर से वकील रोनिता भट्टाचार्य ने दलील दी कि मुंबई महानगर पालिका (मनपा), ठाणे और मीरा-भयंदर-वसई-विरार महानगर पालिका के अंतर्गत पेड़ों पर कृत्रिम रोशनी और बिजली के तार लगाए जाते हैं। इससे पेड़ों को नुकसान हो रहा है। जो पर्यावरण के खिलाफ है।

क्या है कानून

याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र (शहरी क्षेत्र) संरक्षण और वृक्ष संरक्षण अधिनियम 1975 की धारा 2(सी) में ‘पेड़ को गिराना' शब्द को जलाने और काटने या किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने के रूप में परिभाषित करती है। इसके अलावा उस अधिनियम की धारा 8 के अनुसार पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया गया है, जो कि महानगर पालिका के वृक्ष अधिकारी और प्राधिकरण द्वारा दी गई अनुमति के अधीन है।

अदालत ने गर्भवती लड़की को दी मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में उपचार की अनुमति

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को एक 17 वर्षीय गर्भवती लड़की को मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में इलाज कराने की अनुमति दी। लड़की को कुछ अस्पतालों ने चिकित्सा सहायता देने से इनकार कर दिया था। लड़की ने अपनी मां के माध्यम से उच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका में कहा कि अस्पतालों ने इसलिए उसका इलाज करने से इनकार कर दिया क्योंकि वह उस लड़के के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती है, जिसके साथ उसके संबंध थे। याचिका में कहा गया है कि लड़की और लड़के के बीच सहमति से संबंध थे। लड़के की उम्र भी 17 वर्ष है। याचिका में कहा गया कि चिकित्सकीय उपचार से इनकार लड़की के उन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जो संविधान में दर्ज हैं। सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ के समक्ष कहा कि लड़की यहां जेजे अस्पताल में इलाज करा सकती है। वकील ने हालांकि कहा कि लड़की को एक आपात पुलिस रिपोर्ट जमा करानी होगी, जिसमें कहा गया हो कि वह लड़के के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती है। याचिकाकर्ता की वकील ने अदालत को सूचित किया कि लड़की गर्भपात नहीं कराना चाहती थी और बच्चे के जन्म के बाद उसे किसी को गोद दे दिया जाएगा। याचिका में कहा गया है कि उपनगर अंधेरी में एक आश्रय गृह उसे प्रसव से पहले और बाद में सहायता तथा देखभाल के लिए भर्ती करने पर सहमत हो गया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि लड़की शुक्रवार तक अपने वकील के माध्यम से आपात पुलिस रिपोर्ट के रूप में अपना बयान प्रस्तुत करे। उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस में बयान जमा कराने में कोई हर्ज नहीं है। अदालत ने उसे सरकारी जेजे अस्पताल में उपचार कराने की अनुमति दी।


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