बॉम्बे हाईकोर्ट: नाबालिग आरोपी की उम्र निर्धारित करने के लिए पहले स्कूल से जन्म प्रमाणपत्र की कोई आवश्यकता नहीं
- अदालत ने सेशन कोर्ट के आदेश को किया रद्द
- उम्र निर्धारित करने के लिए पहले स्कूल से जन्म प्रमाणपत्र की कोई आवश्यकता नहीं
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि नाबालिग होने का दावा करने वाले आरोपी को उम्र निर्धारित करने के लिए अपने पहले स्कूल से जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। वह जिस भी स्कूल में पढ़ाई किया है, वहां का जन्म प्रमाण पत्र नए किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत प्रस्तुत किया जा सकता है। न्यायमूर्ति एस.एम.मोदक की एकल पीठ ने नाबालिग की याचिका पर सेशन कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम 2015 और नियमों के आधार पर आरोपी की याचिका पर उसके पहले स्कूल से जन्म प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने का फैसला सुनाया गया था। नाबालिग के खिलाफ अपहरण और दुराचार के साथ-साथ पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोपी ने दावा किया कि वह साल 2018 में अपराध के समय पर नाबालिग था।
सेशन कोर्ट ने आरोपी को किशोर न्याय (जेजे) अधिनियम 2007 की धारा 12(3) के अनुसार अपने पहले स्कूल में दाखिला के समय का जन्म प्रमाण पत्र पेश करने के लिए कहा था। नाबालिग की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति मोदक ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने 2007 के नियम 12(3) पर विचार किया, जबकि अब 2015 अधिनियम और 2016 नियम अधिनियमित हैं। इसलिए पहले के नियम के आधार पर दिए गए ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द किया जाता है।