दाखिला न देने का फैसला: आरटीई के बकाए पर सरकार से नहीं मिला कोई आश्वासन
- अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों ने अगले शैक्षणिक सत्र में विद्यार्थियों को दाखिला न देने का किया फैसला
- 1800 करोड़ रुपए के बकाए से नाराज होकर लिया फैसला
- गलतफहमी के कारण अटका मामला
डिजिटल डेस्क, मुंबई। अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों ने अगले शैक्षणिक सत्र से अपनी 25 फीसदी सीटों पर आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों को दाखिला न देने का फैसला किया है। महाराष्ट्र इंग्लिश स्कूल ट्रस्टी एसोसिएशन (मेस्टा) की अगुआई में नागपुर में 1,800 करोड़ रुपए के बकाए की मांग को लेकर आंदोलन हुआ, लेकिन सरकार ने भुगतान को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया। इससे नाराज संगठन ने अगले सत्र से आरटीई (शिक्षा के अधिकार) के तहत विद्यार्थियों को दाखिला न देने का फैसला किया।
20 हजार अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों के संगठन मेस्टा के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. संजय तायडे पाटील ने कहा कि हम जानते हैं कि हमारे इस फैसले से राज्य के हजारों विद्यार्थी अच्छी शिक्षा से वंचित हो जाएंगे और यह उनके लिए अन्यायपूर्ण होगा। लेकिन सरकार के चलते हम ऐसा करने को मजबूर हैं। शैक्षणिक सत्र 2017-18 से बकाया नहीं मिल रहा है। अदालत के आदेश के बावजूद भुगतान नहीं हो रहा है इसलिए हमें सख्त फैसला करना पड़ रहा है।
विधान परिषद में भी उठा मामला
भाजपा शिक्षक विधायक ज्ञानेश्वर म्हात्रे ने विधान परिषद में यह मामला उठाया और कहा कि बजट में स्कूलों को देने के लिए 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। लेकिन उसमें से अब तक सिर्फ 80 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। म्हात्रे ने मांग की है कि शिक्षा संस्थानों को जल्द बकाया रकम दिया जाए।
गलतफहमी के कारण अटका मामला: दीपक केसरकर
स्कूली शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार के साथ ‘मिस कम्यूनिकेशन’ के चलते परेशानी हो रही है। हमने पैसा दे दिया है लेकिन केंद्र के कुछ नियम हैं जिसके चलते वहां से पैसा नहीं आया। उन्होंने कहा कि 5-6 साल का बकाया है जो धीरे-धीरे काफी बढ़ गया है। स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को दाखिला न देने की चेतावनी पर उन्होंने कहा कि बातचीत कर इस मुद्दे को सुलझा लिया जाएगा।