जागरूकता अभियान की जरूरत: देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां लेकिन सिर्फ एक पर जारी हुआ डाक टिकट

  • 83 देश 8 भारतीय गिद्ध प्रजातियों पर जारी कर चुके है टिकट
  • जागरूकता के लिए देश में डाक टिकट जारी करने की मांग
  • नौ प्रजातियां लेकिन सिर्फ एक पर जारी हुआ डाक टिकट

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-07 01:30 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। पर्यावरण के लिए बेहद अहम गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं ऐसे में गिद्धों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान की जरूरत है। इसी कड़ी में देश में पाए जाने वाले गिद्धों पर डाक टिकट जारी करने की मांग की जा रही है। गिद्धों के संरक्षण व संवर्धन की कोशिशों में जुटी बांबे नेचरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के सहायक निदेशक सचिन रानाडे ने कहा कि डाक टिकटों का संग्रह जिसे फिलैटली कहा जाता है वह सिर्फ शौक ही नहीं है विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में भी अहम भूमिका निभाता है लेकिन दुर्भाग्य से इस पहलू को नजर अंदाज किया जा रहा है, देश में गिद्धों की नौ प्रजातियां हैं लेकिन अह तक सिर्फ एक पर स्टैंप पेपर जारी हुआ है। गिद्धों को दर्शाने वाले वैश्विक डाक टिकटों के संग्रह का अध्ययन करने पर पता चलता है कि दुनिया के 83 देशों और संयुक्त राष्ट्र ने अपने स्टैंप पर भारतीय गिद्धों की तस्वीर का इस्तेमाल किया है। रामायण में एक पात्र के रूप में गिद्ध जटायु, गिद्ध की प्रतीक वाली कलाकृतियां और प्राचीन संस्कृतियां भी प्रस्तुत की गईं हैं। रानाडे ने कहा कि डाक टिकटों पर गिद्धों के चित्र प्रकाशित करने से देश के आम लोगों के बीच इन अद्भुत पक्षियों के बारे में जागरूकता फैलेगी साथ ही यह दुनियाभर के स्टैंप संग्राहकों का ध्यान भी खींचेगा। रानाडे के साथ पुणे स्थित वृक्ष संवर्धिनी से जुड़े डॉक्टर अजित वर्तक ने भी डाक टिकटों से जुड़ा यह अध्ययन किया।

40 वर्षों में 4 करोड़ से कुछ हजार तक पहुंचे गिद्ध

रानाडे ने बताया कि बीएनएचएस देश में चार जगहों पर गिद्धों के लिए प्रजनन केंद्र शुरू किए है जहां ह्वाइट बैक वल्चर, लांग बिल्ड वल्चर और स्लेंडर बिल्ड वल्चर इन तीन प्रजातियों का सफल प्रजनन कराया गया है। हम अब तक 39 गिद्धों को उनके प्राकृतिक आवासों में छोड़ चुके हैं। रानाडे ने कहा कि 80 के दशक में गिद्धों की आबादी 4 करोड़ से ज्यादा थी जो अब घटकर कुछ हजार रह गई है। कुछ प्रजातियां 99 फीसदी से ज्यादा खत्म हो गईं हैं। इन्हीं प्रजातियों का प्रजनन किया जा रहा है। मुख्य रुप से जानवरों को दी जाने वाली डाइक्लोफैनिक दवा गिद्धों के लिए घातक साबित हुई। मरे जानवरों को खाने के बाद उनके शरीर में मौजूद इस दवा के चलते गिद्ध भी खत्म होते गए। अब इस पर पाबंदी लगा दी गई है लेकिन तब तक यह बहुत नुकसान पहुंचा चुकी है। पुरानी स्थिति में आने के लिए अब दशकों लग जाएंगे।

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