बॉम्बे हाईकोर्ट: इंद्राणी पर बनी नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने मिली हरी झंडी
- सीरीज पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका
- सीबीआई की याचिका खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा डॉक्यूमेंट्री सीरीज 'द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी-बरीड ट्रुथ' की रिलीज पर रोक लगाने के अनुरोध की दायर याचिका खारिज कर दिया। इसके साथ ही डॉक्यूमेंट्री सीरीज के प्रसारित होने का रास्ता साफ हो गया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने डॉक्यूमेंट्री सीरीज देखा और शीना बोरा की हत्या के मामले में चल रहे मुकदमे के खिलाफ इसमें कुछ भी प्रतिकूल नहीं पाया। सीबीआई ने इस मामले में इंद्रणी मुखर्जी को मुख्य आरोपी बनाया है। खंडपीठ ने कहा कि हमने नहीं सोचा था कि इसमें कुछ भी नहीं है। हमने शुरू में सोचा था कि शायद कुछ होगा और इसलिए हमने (सीरीज) भी देखी। सार्वजनिक धारणा हमारी चिंताओं में सबसे कम है। यहां तक कि उसने (इंद्राणी) जो भी (सीरीज) कहा है, सब कुछ सार्वजनिक डोमेन में है। ईमानदारी से कहूं, तो हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जो अभियोजन के खिलाफ जाता हो। हमें लगा कि आपको वास्तविक आशंका थी और इसलिए हमने आप को सीरीज देखने का अवसर दिया और हमने दूसरे पक्ष को उस पर बहस करने की भी अनुमति नहीं दी। आप आरोपी को दोषी नहीं मान सकते हैं।
विशेष सीबीआई अदालत द्वारा एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज के प्रसार पर रोक लगाने के उसके आवेदन को खारिज करने के बाद सीबीआई ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सीबीआई ने कहा कि श्रृंखला में आरोपियों और कुछ गवाहों के साक्षात्कार भी शामिल हैं। एजेंसी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास ने दलील दी कि सीबीआई ने केवल ट्रेलर देखा था, इसलिए उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि सीरीज में कितने गवाह दिखाए गए थे। सीरीज देखने के बाद भी सीबीआई ने सीरीज के प्रसारण पर रोक लगाने के अपने अनुरोध को दोहराया।
संशोधित आईटी नियम प्रकरण: अंतरिम राहत पर फैसला अदालत में सुरक्षित
वहीं बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र की तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) पर रोक लगाने के स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा समेत तीन याचिका कर्ताओं की अंतरिम राहत संबंधी मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिकाओं में जब तक अदालत नए आईटी नियम की वैधता पर फैसला नहीं ले लेता, तब तक सरकार को फर्जी, गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के अधिकार पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर की एकलपीठ के समक्ष गुरुवार को कुणाल कामरा समेत तीन याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि ऐसा कोई अंतरिम आदेश नहीं हो सकता, जो कुछ व्यक्तियों के इशारे पर सार्वजनिक शरारत को प्रोत्साहित करता हो। उन्होंने कहा कि एफसीयू गलत सूचना को प्रभावी ढंग से संबोधित करने का सबसे कम प्रतिबंधात्मक तरीका है। इससे पहले कुणाल कामरा के वकील नवरोज सीरवई ने कहा कि एफसीयू जनता और लोकतंत्र की भूमिका पर प्रभाव डालता है। यह नियम जनता, असहमति, सहमति, आलोचना और बहस की आवाजों को दबाएगा