Nagpur News: सीधी बात नहीं- घोषणा और पत्रों में झुग्गीवासियों के मुद्दे नदारद
- पदयात्रा-सभाओं में जो बढ़ा रहे शान उन्हें ही घोषणा-पत्र में जगह नहीं
- घोषणा और पत्रों में झुग्गीवासियों के मुद्दे नदारद
Nagpur News : विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने-अपने घोषणा-पत्र जारी कर कई तरह के लुभावने वादे किए हैं, जिनमें लाडली बहन योजना की आर्थिक मदद बढ़ाने सहित कई अहम घोषणाएं हैं, लेकिन जिन राजनीतिक पार्टियों की कमान गरीब खासकर झोपड़-पटि्टयों के भरोसे है और इन दिनों उम्मीदवारों की पदयात्रा और सभाओं में भीड़ का हिस्सा बने हैं, वे ही इनके घोषणा-पत्र से दूर हैं। न महाविकास आघाड़ी और न ही महायुति के घोषणा-पत्र में इन्हें सीधेतौर पर जगह मिल सकी है। ऐसे में एक ऐसे घोषणा-पत्र की मांग उठ रही है, जो उनके अधिकारों और आवश्यकताओं पर ध्यान दे।
महाराष्ट्र में झुग्गीवासियों की सबसे बड़ी आबादी है, जो 1.1 करोड़ से अधिक है और 2.1 लाख से ज्यादा लोग बेघर हैं। इसके अलावा, राज्य में विशाल अनौपचारिक श्रम बल है, जो अर्थव्यवस्था में 80 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। नागपुर में भी झुग्गीवासियों की जनसंख्या 8 लाख से अधिक है। फिलहाल यह वर्ग राजनीतिक पार्टियों की सभा, पदयात्रा का अहम हिस्सा है। पार्टियां इस वर्ग को दिहाड़ी पर अपने-अपने रैलियों में ला रही है। ये ही इन रैलियों में भीड़ होने का अहसास करा रहे हैं, किन्तु घोषणा-पत्र में ये जगह नहीं बना पाए। इसे लेकर शहर में झुग्गी-झोपड़ियों में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन खासे नाराज हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) और महायुति के घोषणा पत्रों में झुग्गीवासियों के लिए किए गए वादे और उनकी सच्चाई पर नजर डालना बेहद जरूरी है।
एमवीए ने अपने घोषणा पत्र में झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण (एसआरए) की योजनाओं को केवल बड़े शहरों तक सीमित न रखते हुए बड़े कस्बों और तहसीलों तक बढ़ाने का वादा किया है। इस कदम से झुग्गीवासियों को कानूनी मान्यता और बेहतर आवास की सुविधा मिलने की संभावना जताई गई है। हालांकि, यह नीति मुख्य रूप से महानगरों पर केंद्रित है और छोटे द्वितिय व तृतीय श्रेणी के शहरों के गरीब निवासियों की वास्तविक जरूरतों को नजरअंदाज करती है। साथ ही, इसमें झुग्गीवासियों को भूमि के पट्टे देने की बात नहीं की गई है, जो जबरन बेदखली से सुरक्षा और बुनियादी सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करता है।
अनिल वासनिक, संयोजक, शहर विकास मंच के मुताबिक एमवीए ने सस्ते आवास को प्राथमिकता दी है, ताकि झुग्गीवासियों की जीवन गुणवत्ता बेहतर हो सके। हालांकि, उनकी योजना का मुख्य फोकस पुनर्विकास पर है, न कि वास्तविक स्वामित्व प्रदान करने पर। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के अनुसार, झुग्गी निवासियों के लिए भूमि का पट्टा एक आवश्यक तत्व है, जिससे उनका सस्ते आवास का सपना साकार हो सके। अगर एमवीए पुनर्विकास से आगे बढ़कर भूमि के पट्टे के माध्यम से स्वामित्व देने पर विचार करता, तो यह एक बेहतर कदम होता। महायुति के घोषणा पत्र में महाराष्ट्र के गरीब लोगों के लिए भोजन और रहने की जगह देने का वादा किया गया है। हालांकि, इस वादे का व्यावहारिक रूप से कैसे क्रियान्वयन होगा, इसका विवरण गायब है।
नितिन मेश्राम, प्रोजेक्ट लीड, युवा संस्था के मुताबिक ये वादे झुग्गीवासियों के लिए सतही तौर पर सहायक हैं, लेकिन इनमें झुग्गी पुनर्विकास या मौजूदा बस्तियों को सुधारने की ठोस योजना नहीं है। अगर राजनीतिक पार्टियां वास्तव में झुग्गीवासियों के सपनों को पूरा करना चाहती हैं, तो उन्हें इस समुदाय को एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार के रूप में देखना होगा। केवल चुनाव के समय उनका उपयोग करना और उनकी मूलभूत जरूरतों को घोषणाओं से बाहर रखना एक तरह से विकास प्रक्रिया से उन्हें वंचित रखना है। उसी तरह आवास अधिकार को मजबूत करने हेतु शहर में विभिन्न रूपों में सस्ते आवास जैसे कि कामकाजी महिलाओं के होस्टल, छात्रावास, सस्ते आवास और किराएदार आवास पर्याप्त रूप से निर्मित किए जाने चाहिए। समग्र रूप से देखा जाए, तो झुग्गीवासियों की वास्तविक जरूरतें इन घोषणा पत्रों में किए गए वादों से मेल नहीं खातीं। इनकी अनदेखी से यह साफ है कि उनके लिए ठोस और दीर्घकालिक योजनाओं का अभाव है।