Mumbai News: संशोधित आईटी नियमों पर केंद्र को झटका, नाबालिग से रेप के दोषी को राहत नहीं

    Bhaskar Hindi
    Update: 2024-09-20 15:17 GMT

    Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट से शुक्रवार को केंद्र सरकार को संशोधित आईटी नियमों को लेकर झटका लगा। अदालत ने सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर फर्जी और झूठी सामग्री की पहचान करने के लिए संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों को असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें खारिज कर दिया। इससे पहले इस साल जनवरी में एक पीठ द्वारा संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विभाजित फैसला सुनाया था। इसके बाद मामले को ‘टाई-ब्रेकर जज’ के रूप में न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर को सौंपा गया था। न्यायमूर्ति चंदुरकर ने कहा कि मैंने मामले पर विस्तार से विचार किया है। विवादित नियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(जी) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने कहा कि नियमों में नकली, झूठा और भ्रामक शब्द की परिभाषा के अभाव में अस्पष्ट और गलत है। कुणाल कामरा ने नए आईटी नियमों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अदालत ने स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और अन्य द्वारा नए नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अनुमति दे दी, जिसमें सरकार के बारे में नकली या झूठी सामग्री की पहचान करने के लिए एक तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) स्थापित करने का प्रावधान भी शामिल है। जनवरी में न्यायमूर्ती गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने विभाजित फैसला सुनाए जाने के बाद आईटी नियमों के खिलाफ याचिकाओं को न्यायमूर्ति चंदुरकर के पास भेजा गया था। न्यायमूर्ति पटेल ने कहा था कि नियम सेंसरशिप के समान हैं, लेकिन न्यायमूर्ति गोखले ने कहा था कि इनका मुक्त भाषण पर कोई ‘ठंडा प्रभाव' नहीं है, जैसा कि तर्क दिया गया है। 6 अप्रैल 2023 को, केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में संशोधनों को लागू किया, जिसमें सरकार से संबंधित फर्जी, झूठी या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए एफसीयू के लिए प्रावधान शामिल है। आईटी नियमों के तहत अगर एफसीयू को कोई ऐसी पोस्ट मिलती है, जो फर्जी और झूठी है और इसमें सरकार के व्यवसाय के बारे में भ्रामक तथ्य हैं, तो वह उसे सोशल मीडिया मध्यस्थों को चिह्नित करेगी।

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने छात्रावास में बेसहारा नाबालिग छात्रा से दुराचार के दोषी को राहत देने से किया इनकार

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने नासिक के जिला आदिवासी महिला हक्का संरक्षण समिति के तहत छात्रावास की संचालिका सुशीला अलबाद के बेटे अतुल को राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने दोषी के खिलाफ सेशन कोर्ट के दस साल की कारावास की सजा बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि सेशन कोर्ट का दोषी को कारावास की सजा सुनाने का फैसला सही है। न्यायमूर्ति किशोर सी.संत की एकलपीठ के समक्ष अतुल अलबाद की ओर से वकील आशीष दुबे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में नासिक सेशन कोर्ट के याचिकाकर्ता के खिलाफ सुनाई गई 10 साल की सजा को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। पीड़िता की ओर से पेश वकील यशोदीप देशमुख और वैदेही देशमुख ने याचिकाकर्ता की याचिका का विरोध किया। पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि दोषी की मां छात्रावास का प्रभारी होने के कारण अभिभावक थी। उस पर छात्रावास में रहने वाली लड़कियों की देखभाल करनी थी।, लेकिन उन्होंने न केवल चुप्पी साधी थी। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में पीड़िता के पास चुप रहने और घटना के बारे में किसी को न बताने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अगर उसने शिकायत की होती, तो उसे डर था कि उसका आश्रय छिन जाएगा। ऐसी परिस्थितियों में तुरंत शिकायत दर्ज न करना अभियोजन पक्ष के लिए घातक नहीं कहा जा सकता है। सेशन कोर्ट का दोषी के खिलाफ आजीवन कारावास की सजा सुनाना सही फैसला है। सुशीला शंकर अलबाद नासिक के पेठ स्थित जिला आदिवासी महिला हक्का संरक्षण समिति के अंतर्गत बेसहारा लड़कियों के लिए छात्रावास चलाती है। 14 वर्षीय पीड़ित लड़की को 2013 में छात्रावास में भर्ती हुई थी और 8वीं कक्षा में पढ़ती थी थी। 2017 में पीड़िता को वयस्क लड़कियों के साथ अन्य संस्था में मुंबई स्थानांतरित किया गया, तो संरक्षण गृह में पीड़िता की चिकित्सकीय जांच की गई। इस दौरान पीड़िता ने उन्हें बताया कि अक्टूबर 2015 को दिवाली की छुट्टियों में याचिकाकर्ता ने उसे छात्रावास के कार्यालय में बुलाया और उसके साथ दुराचार किया। उसने उसे धमकी दी थी कि वह किसी को कुछ न बताए। संस्था के संरक्षक के सहयोग से पीड़िता ने 17 जुलाई 2017 को याचिकाकर्ता के खिलाफ मुंबई के साकीनाका पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कर नासिक के पेठ पुलिस स्टेशन को जांच सौंप दी थी। नासिक सेशन कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए 10 साल की कारावास की सजा सुनाई थी।

    हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डेंटल प्रैक्टिशनर्स को लेकर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

    वहीं बॉम्बे हाईकोर्ट ने हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डेंटल प्रैक्टिशनर्स को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस मामले दायर जनहित याचिका (पीआईएल) में हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डेंटल प्रैक्टिशनर्स के खिलाफ कार्रवाई का अनुरोध किया गया है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ के समक्ष डायनेमिक डर्मेटोलॉजिस्ट एंड हेयर ट्रांसप्लांट एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। जनहित याचिका में 6 दिसंबर 2022 को डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया (डीसीआई) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई है। याचिका में दावा किया गया है कि देश भर में ओरल और मैक्सिलोफेशियल सर्जन को एस्थेटिक और हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करने की अनुमति दी गई। डेंटल प्रैक्टिशनरों द्वारा किए जा रहे हेयर ट्रांसप्लांट और डर्मेटोलॉजी अभ्यास के बारे में कई शिकायतें मिल रही हैं। ऐसे डेंटल प्रैक्टिशनर खुद को डर्मेटोलॉजी और हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन के रूप में विज्ञापन दे रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि हेयर ट्रांसप्लांट और डर्मेटोलॉजी की प्रक्रिया बहुत ही जटिल है, जिसे केवल विशेषज्ञ ही कर सकते हैं और जिन्होंने विशिष्ट प्रशिक्षण लिया है। कोई भी व्यक्ति जो किसी विशेष चिकित्सा पद्धति को नहीं जानता है, लेकिन फिर भी उस संबंधित पद्धति में अभ्यास करता है, तो उसे चिकित्सा लापरवाही का दोषी माना जाएगा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बढ़ने के साथ ऐसे डेंटल प्रैक्टिशनर्स की पहुंच बहुत दूर तक हो गई है, जो डर्मेटोलॉजिस्ट या हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन के रूप में अयोग्य हैं। इससे डर्मेटोलॉजिस्ट और हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन के पेशे को प्रभावित किया है, क्योंकि अवैध विज्ञापनों पर कोई रोक नहीं है।

    साकीनाका की नाबालिग पीड़िता के मामले पर सुनवाई, राज्य सरकार से मांगी जानकारी

    इसके अलावा बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को प्रदेश में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की दुराचार पीड़ित बच्चियों के परिजन को दिए गए हर्जाने की जानकारी राज्य सरकार से मांगी। यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष 4 दिन में पीड़िता का बयान दर्ज करने के लिए दिशा-निर्देश भी अदालत ने जारी किया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ के समक्ष साकीनाका की दुराचार पीड़िता के परिवार की ओर से वकील अमित कटरनवरे और वकील पूजा डोंगरे की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील कटरनवरे ने कोर्ट को बताया कि पीड़ित बच्ची के परिवार को हर्जाने के रूप में 3 लाख रुपए की रकम नहीं मिली है। सरकारी वकील हितेन वेनेगावकर कहा कि मदद राशि मंजूर की गई है, जो जल्द ही परिवार को मिल जाएगी। अदालत ने सरकारी वकील से पूछा कि पॉक्सो मामले में एसटी और एससी वर्ग की कितनी पीड़ित बच्चियों के परिजन को हर्जाने की रकम दी गई है? सरकार से यह जानकारी पीठ ने हलफनामा के जरिए मांगी है।



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