Mumbai News: महाराष्ट्र के 37, 698 ग्रामीणों ने बायो-गैस अपनाकर बदली है अपनी जिंदगी
- निजी क्षेत्र की कंपनियों के सीएसआर से बदल रही तस्वीर
- भोजन पकाने चूल्हे में जलाई जाती थी लकड़ी
- धुंए के चलते महिलाओं को घेरती हैं कई बीमारियां
- 6 साल में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 85 हजार से अधिक बायो गैस संयंत्र लगाए
Mumbai News :सुजीत गुप्ता। निजी क्षेत्र की कंपनियों के कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) कार्यक्रम के तहत खास मुहिम चलाई जा रही है। इसके तहत पुणे, नाशिक, सोलापुर सहित राज्य के कई जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में बायो-गैस (संयंत्र) लगाए जा रहे हैं। इन संयंत्रों में पशुओं के गोबर से बायो-गैस तैयार की जाती है। इससे रसोई में भोजन-नाश्ता पकाया जा रहा है। खास यह कि सौ-दो सौ नहीं बल्कि राज्य के 37,698 ग्रामीण इस बायो-गैस को अपना चुके हैं। इनमें से अधिकांश लोग एलपीजी सिलेंडर का इस्तेमाल बंद कर चुके हैं। ये ग्रामीण राज्य के विभिन्न जिलों में फैले हैं। विदित हो कि दूर-दराज के गांवों में महिलाएं आज भी लकड़ी या गोबर के उपले से भोजन पकाती हैं। इसके धुएं से महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। खांसी, दमा जैसी बीमारियां उन्हें घेर लेती हैं। बायो-गैस मिलने से ये महिलाएं खुश हैं। पहली बात तो यह कि एलपीजी सिलेंडर पर अब इन्हें खर्च नहीं करना पड़ता। दूसरी बात यह कि चूल्हे में लकड़ी जलाने-धुएं से उन्हें निजात मिल गई है।
साझा प्रयास से मिली सफलता
महिलाओं की समस्या दूर करने के लिए सिस्टेमा बायो ने पहल की। इसमें ग्रामीण भी शामिल किए गए। अन्य कंपनियां भी अपनी सीएसआर निधि इसके लिए मुहैया कराने लगीं। जो काम पहले मुश्किल लग रहा था, वह साझा प्रयास से संभव हो गया। इस मुहिम के तहत छह साल में देश के 22 राज्यों में 80 हजार से ज्यादा बायो-गैस प्लांट लगाए गए हैं।
3-4 मवेशी होने जरूरी
पहल के तहत ऐसे छोटे किसानों के यहां बायो-गैस प्लांट लगाया जाता है, जिनके पास 3 से 4 मवेशी होते हैं। इन पशुओं से प्राप्त गोबर का प्लांट में डाला जाता है। इससे एक परिवार का भोजन पकाने भर की बायो-गैस मिल जाती है। अब लकड़ी से भोजन बनाने की मजबूरी नहीं है।
किसानों को दोहरा लाभ
बायो-गैस प्लांट से किसानों को दोहरा लाभ हो रहा है। एक तो रसोई के लिए पर्यावरण अनुकूल गैस मिल रही है। दूसरा लाभ गोबर के खाद के रूप में मिल रहा है। इस खाद का उपयोग किसान खेती के लिए करते हैं। एलपीजी सिलेंडर पर खरीदना नहीं पड़ता, उसके रुपए बच रहे हैं। पर्यावरण की रक्षा भी हो रही है।