Mumbai News: जबरन वसूली का मामले में त्रिपाठी के खिलाफ सबूत नहीं, मकोका मामले में पुणे के दो भाई बरी

  • आईपीएस अधिकारी सौरभ त्रिपाठी के खिलाफ विभागीय जांच में रिश्वत मांगने के नहीं मिले सबूत
  • अदालत ने पुलिस से मांगा जवाब
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने मकोका मामले में पुणे के दो भाईयों को किया बारी

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-27 16:36 GMT

Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को आरोपी आईपीएस अधिकारी सौरभ त्रिपाठी और उनके जीजा बिक्री कर में सहायक आयुक्त आशुतोष मिश्रा के खिलाफ जबरन वसूली के मामले में मुंबई पुलिस से जवाब मांगा। उन्होंने याचिका में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के अनुरोध किया है। अदालत ने मामले की सुनवाई अगले सप्ताह रखी है। न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ के समक्ष आशुतोष मिश्रा और सौरभ त्रिपाठी की याचिकाओं पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि 18 फरवरी 2022 को एलटी मार्ग पुलिस स्टेशन में भुलेश्वर अंगड़िया एसोसिएशन की शिकायत पर दर्ज मामले में अभी आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। त्रिपाठी के खिलाफ विभागीय जांच में रिश्वत मांगने के सबूत नहीं मिले हैं। जबकि मिश्रा के खिलाफ जो आरोप लगे हैं, उनके मोबाइल की जांच सच्चाई सामने आ सकती है। 2010 बैच के अधिकारी त्रिपाठी को जबरन वसूली के मामले में आरोपी के रूप में नामजद भी नहीं किया गया था। एफआईआर में उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं है। एलटी मार्ग पुलिस ने पुलिस निरीक्षक ओम वांगटे, और नितिन कदम समेत कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। उस समय त्रिपाठी परिमंडल 2 में पुलिस उपायुक्त के रूप में तैनात थे। आरोप है कि उन्होंने भुलेश्वर के अंगड़िया से उनके व्यवसाय को सुचारू रूप से चलाने के लिए 10 लाख रुपए हफ्ता की मांग की गई थी। राज्य सरकार ने त्रिपाठी को निलंबित कर दिया। वह अधिकारियों को सूचित किए बिना ड्यूटी से अनुपस्थित पाए गए थे। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने नवंबर 2022 में त्रिपाठी को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था। इसके बाद राज्य सरकार ने जुलाई 2023 में त्रिपाठी का निलंबन रद्द कर उन्हें बहाल कर दिया। त्रिपाठी वर्तमान में राज्य खुफिया विभाग में पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मकोका मामले में पुणे के दो भाईयों को किया बारी

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के दोषी दो भाईयों को महाराष्ट्र कंट्रोल आफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) मामले में में बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि दोनों भाईयों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। अभियोजन पक्ष अपराध साबित करने में विफल रहा है। याचिकाकर्ताओं को मकोका के तहत अपराध करने के लिए भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की एकलपीठ ने विजय काले और उद्देश काले की ओर से वकील श्रवण गिरी और वकील निखिल पाटिल की दायर याचिका पर अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ताओं की पहचान का साक्ष्य संदिग्ध है। इस संबंध में उचित संदेह पैदा होता है, जिसका लाभ याचिकाकर्ताओं को मिलना चाहिए। विजय के खिलाफ एकमात्र सबूत आभूषणों और नकद राशि की बरामदगी के बारे में है। अभियोजन पक्ष ने उन गवाहों की जांच नहीं की, जिनकी उपस्थिति में याचिकाकर्ता के पास से बरामदगी की गई थी। अभियोजन पक्ष ने उन गवाहों की भी जांच नहीं की है, जिसकी उपस्थिति में कथित रूप से सोने के पेंडेंट की पहचान की गई थी। पीठ ने पाया कि इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जब इन दोनों गवाहों से आभूषणों की पहचान कराई गई, तो दो अलग-अलग पंचनामा तैयार किए गए। दोनों पंचनामा में इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि जिन पैकेटों में आभूषण रखे गए थे, उन पर लगी सील पंचों की उपस्थिति में हटा दी गई थी। क्या था पूरा मामला कई ट्रक चालक, मालिक और क्लीनर ने अपने ट्रक पेट्रोल पंप के पीछे खुली पार्किंग में खड़े कर रखे थे। वे ट्रक स्टील का परिवहन कर रहे थे। 26 और 27 फरवरी 2014 की रात को करीब सात से आठ लोग चाकू और डंडे लेकर इन ट्रकों में घुसे और उनसे लूटपाट की। ट्रक मालिकों में से एक की शिकायत पर पुणे के लोनी कालभोर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराई थी। इस लूटपाट के मामले में पुलिस ने दोनों भाईयों को गिरफ्तार किया था। बाद में उन पर मकोका लगा दिया गया था।

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