Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो आजीवन कारावास की सजा के दोषियों को राहत देने से किया इनकार
Mumbai News : बॉम्बे हाई कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा के दो दोषियों को राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने पुणे सेशन कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि आरोपी के कहने पर हथियारों की जब्ती और आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के आरोप को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन करता है। हमारे विचार में सभी प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा सुनाई गई घटना के विवरण की विश्वसनीयता को तोड़ा नहीं जा सकता है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष शगीर शकील शेख और मजहर बशीर शेख की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि यह मामला चश्मदीद गवाहों के बयान पर आधारित है। हमें नहीं लगता कि इन गवाहों की गवाही की किसी पुष्टि की कोई आवश्यकता है। याचिकाकर्ता शगीर के कहने के आधार पर हथियार जब्त किया गया था। वे हथियार घास में छिपाए थे। उस पर खून के धब्बे थे। चिरागुद्दीन हुस्नुद्दीन मदारी ने पुणे के शिरुर पुलिस को बताया था कि शगीर शकील शेख, हुसैन मकबूल शेख, शकूर रज्जाक शेख, और मजहर बशीर शेख तलवार और डंडा समेत घातक हथियारों से लैस होकर 14 फरवरी 2011 को शब्बीर पर हमला किया। वह गंभीर रूप से घायल होकर गिर पड़ा। जब उसे बचाने के लिए दीदार गया, तो आरोपियों ने उसके सिर पर डंडे से वार किया, जिससे वह लहूलुहान हो गया। आरोपी शकूर ने हाथ में तलवार लेकर उसे धमकाया, जबकि अन्य तीन आरोपियों ने उसे और उसके साथियों को पीटना शुरू कर दिया। उसके भाई शब्बीर और उसके रिश्तेदार दीदार को गंभीर चोटें आई थीं। अस्पताल में इलाज के दौरान शब्बीर की मौत हो गयी थी। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
नाबालिक छात्रा से दुराचार का दोषी बॉम्बे हाई कोर्ट से 10 साल की कारावास की सजा से बरी
नाबालिक छात्रा से दुराचार का दोषी अरविंद महादेव वडार 10 साल की कारावास की सजा से बॉम्बे हाई कोर्ट से बरी हो गया। अदालत ने उसके खिलाफ कोल्हापुर विशेष पाक्सो अदालत के फैसले को रद्द कर दिया है। अदालत ने माना कि चिकित्सा साक्ष्य काफी अस्पष्ट है। याचिकाकर्ता द्वारा जबरन दुराचार के मामले की पुष्टि नहीं होती है। पीड़ित छात्रा ने मां के अलावा अपने शिक्षकों को इन घटनाओं के बारे में नहीं बताया है। अभियोजन पक्ष मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। इसलिए संदेह का लाभ दोषी को दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की एकलपीठ के समक्ष अरविंद महादेव वडार की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने कहा कि पीड़ित छात्रा ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया। उसने कहा कि उसके और याचिकाकर्ता के बीच कुछ भी नहीं हुआ था। पीड़िता ने इस बात से भी इनकार किया है कि आरोपी ने उसके साथ मारपीट कर जबरन बाइक पर बैठा कर लाज में ले गया था। आरोप है कि मार्च 2018 में याचिकाकर्ता पीड़िता को मारपीट और धमका कर अपनी बाइक पर बैठाकर लॉज में ले गया था और वहां उसने उसके साथ दुराचार किया था। उसके बाद पीड़िता की मां की शिकायत पर पुलिस ने 20 अगस्त 2018 को एफआईआर दर्ज की थी। कोल्हापुर की विशेष पॉक्सो अदालत ने 10 अगस्त 2021 याचिकाकर्ता को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम 2012 की धारा 6 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)की धाराओं 376, 354, 354(डी), 506 और 323 के तहत दोषी ठहराया गया था। विशेष अदालत ने उसे 10 साल की कारावास की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ता ने विशेष अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि पीड़िता के पूरे बयान से पता चलता है कि वह अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया है। जबकि उसने अपनी मां को याचिकाकर्ता पर मारपीट कर जबरदस्ती दुराचार करने की बात कही थी। पीड़िता और गवाहों के विरोधाभासी बयान का लाभ याचिकाकर्ता को मिलना चाहिए। पीठ ने उसे पास्को मामले से बरी कर दिया और उसके खिलाफ विशेष अदालत के फैसले को भी रद्द कर दिया।