हाईकोर्ट: संशोधित आईटी नियमों के खिलाफ कुणाल कामरा समेत तीन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित
- अंतरिम राहत पर हाईकोर्ट का फैसला सुरक्षित
- न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर ने दोनों पक्षों को दलीलें सुनने के बाद फैसला रखा सुरक्षित
- न्यायमूर्ति गौतम एस.पटेल के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने एक-दूसरे के विपरीत सुनाया था फैसला
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र की तथ्य जांच इकाई (एफसीयू) पर रोक लगाने के स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा समेत तीन याचिकाओं के अंतरिम राहत पर फैसला सुरक्षित रखा है। याचिकाओं में जब तक अदालत नए आईटी नियम की वैधता पर फैसला नहीं ले लेता, तब तक सरकार को फर्जी, गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के अधिकार पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति ए.एस.चंदुरकर की एकलपीठ के समक्ष गुरुवार को कुणाल कामरा समेत तीन याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि ऐसा कोई अंतरिम आदेश नहीं हो सकता, जो कुछ व्यक्तियों के इशारे पर सार्वजनिक शरारत को प्रोत्साहित करता हो। उन्होंने कहा कि मैंने एफसीयू को सूचित नहीं करने के लिए एक बयान दिया था, यह बिल्कुल सही है। अब हमारे पास एक ऐसी स्थिति है, जहां खंडित फैसला है। अगर मैं कुछ व्यक्तियों के लिए अपना बयान जारी रखता हूं, तो मैं बड़े पैमाने पर लोगों के प्रति अपने कर्तव्य में असफल हो जाऊंगा। इसका कोई कम प्रभाव नहीं होगा।
बड़े पैमाने पर लोगों को सच्चाई जानने से वंचित करना उचित नहीं होगा। मेहता ने सोशल मीडिया पर प्रसारित भ्रामक पोस्ट के विभिन्न उदाहरण दिए, जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और हॉलीवुड अभिनेता मॉर्गन फ्रीमैन पर डीपफेक का है। उन्होंने कहा कि एफसीयू गलत सूचना को प्रभावी ढंग से संबोधित करने का सबसे कम प्रतिबंधात्मक तरीका है। संशोधित नियम सामग्री को हटाने की कोई बाध्यता नहीं रखता है।
इससे पहले कुणाल कामरा के वरिष्ठ वकील नवरोज सीरवई ने कहा कि एफसीयू जनता और लोकतंत्र की भूमिका पर प्रभाव डालता है। यह नियम जनता, असहमति, सहमति, आलोचना और बहस की आवाजों को दबाएगा। नागरिकों को विचार देने का अधिकार है, सरकार को प्रतिक्रिया देने का अधिकार है। इस साल 31 जनवरी को दो-न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा मामले में खंडित फैसला सुनाए जाने के बाद मामले को तीसरे न्यायाधीश चंदुरकर के पास भेज दिया गया है।