बॉम्बे हाईकोर्ट: सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी
- अदालत ने की शिक्षा की बढ़ती लागत की निंदा
- पुणे में दो संगठनों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने की अनुमति मामला
- राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं की खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षा को भारतीय संस्कृति में पवित्र माना जाता है, अब यह सभी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। सभी को शिक्षा सुनिश्चित करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।अदालत ने शिक्षा की बढ़ती लागत की भी निंदा की। न्यायमूर्ति ए.एस.चंदूरकर और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने पुणे में दो संगठनों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने की अनुमति नहीं देने के राज्य सरकार के फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया। राज्य सरकार ने याचिकाकर्ताओं को इस आधार पर अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था कि वे इस क्षेत्र में नए थे और पहले कोई शैक्षणिक संस्थान स्थापित नहीं किया था।
उनकी वित्तीय स्थिति दी गई अनुमति से कम थी। खंडपीठ ने जागृति फाउंडेशन और संजय मोदक एजुकेशन सोसाइटी द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि अदालत शिक्षा नीति मामलों में विशेषज्ञ नहीं है। राज्य सरकार को सर्वश्रेष्ठ का चयन करने का अधिकार है और केवल उसके चुनने की शक्ति को मनमाना नहीं कहा जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि पुणे को दशकों से पूर्व का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है और इसने न केवल भारत, बल्कि अन्य देशों के छात्रों को भी आकर्षित किया है।
इसके परिणामस्वरूप पुणे शैक्षणिक संस्थानों का केंद्र बन गया है। समय बीतने के साथ और शहर के विकास के कारण न केवल पुणे शहर में, बल्कि इसकी परिधि के आसपास भी कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना में भारी वृद्धि और प्रतिस्पर्धा हुई है। अदालत ने कहा कि हमारी संस्कृति में शिक्षा को पवित्र माना जाता है, लेकिन समय में बदलाव के साथ इसने एक अलग रंग ले लिया है और सभी के पहुंच से बाहर हो रही है। मानवता की वृद्धि और विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सभी तक पहुंचे की राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।