बॉम्बे हाईकोर्ट: उच्च शिक्षा के छात्रों की आत्महत्या में वृद्धि चिंताजनक, दूसरे मामले में पुनर्वास नहीं होने को लेकर सरकार को फटकार

  • राज्य में 3 साल में 4 हजार से अधिक छात्रों ने किया आत्महत्या
  • अदालत ने राज्य सरकार, मुंबई विश्वविद्यालय, उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग को हलफनामा दाखिल कर 3 सप्ताह में जवाब देने का दिया निर्देश
  • 1967 में एनडीए के अधिग्रहित भूमि से प्रभावित नगर के न्यू कोपरगांव के परिवारों का पुनर्वास नहीं होने को लेकर राज्य सरकार को लगाई फटकार

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-30 15:34 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि उच्च शिक्षा के छात्रों में आत्महत्या में वृद्धि चिंताजनक है। इसके लिए सभी संबंधितों द्वारा तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य सहित प्रत्येक छात्र का कल्याण सामान्य रूप से प्रत्येक छात्र का एक अभिन्न अंग है। अदालत ने राज्य सरकार, मुंबई विश्वविद्यालय, उच्च और तकनीकी शिक्षा विभाग को हलफनामा दाखिल कर 3 सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ के समक्ष अदालत बाल अधिकार कार्यकर्ता शोभा पंचमुख की ओर से वकील श्याम पंचमुख की दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई हुई। याचिका में मुंबई विश्वविद्यालय (एमयू) को सभी संबद्ध कॉलेजों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए परामर्शदाता रखने के लिए सर्कुलर जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। साथ ही उच्च शिक्षा के छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए अब तक उपलब्ध अपर्याप्त उपायों के बारे में चिंता जताई गई है। याचिकाकर्ता के वकील श्याम पंचमुख ने दलील दी कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े को देंखें, तो साल 2019, 2020 और 2021 में छात्रों की आत्महत्याओं की संख्या क्रमशः 1487, 1648 और 1834 है। इस तरह तीन सालों में ही 4 हजार 969 छात्रों ने मानसिक रूप से परेशान होकर आत्महत्या की। यह हर साल बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है। इस पर पीठ ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य समेत प्रत्येक छात्र का कल्याण सामान्य रूप से छात्रों का अभिन्न अंग है। महाराष्ट्र विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 5(36) विश्वविद्यालयों पर कॉलेज, विश्वविद्यालय और संस्थानों में स्वस्थ माहौल को बढ़ावा देने और छात्रों के कल्याण को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करनी चाहिए। पीठ ने कहा कि इस प्रकार हमारी राय में विश्वविद्यालय कॉलेज और संस्थानों में ऐसा माहौल बनाने के लिए उपाय करने के लिए बाध्य है, जहां आत्महत्या की घटनाएं न हों। ऐसी स्थिति चिंताजनक नहीं है, लेकिन सभी संबंधित पक्षों द्वारा तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ज्योति चव्हाण ने अदालत को सुझाव दिया कि केंद्र को भी पार्टी बनाया जाना चाहिए। क्योंकि उसके पास आत्महत्या की रोकथाम के लिए विशेष बजट आवंटन है। कम लागत और सहायक प्रशासन भारतीय मेडिकल के छात्रों को बांग्लादेश की ओर आकर्षित करता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को भी पार्टी के रूप में जोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि कई कॉलेज अब स्वायत्त हो रहे हैं। इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता से जनहित याचिका में संशोधन कर यूजीसी को पार्टी के रूप में जोड़ने के लिए कहा।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1967 में एनडीए के अधिग्रहित भूमि से प्रभावित नगर के न्यू कोपरगांव के परिवारों का पुनर्वास नहीं होने को लेकर राज्य सरकार को लगाई फटकार

उधर दूसरे मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 1967 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के अधिग्रहित भूमि से प्रभावित न्यू कोपरगांव के परिवारों का पुनर्वास नहीं होने को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने सरकार को हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है। 3 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई होगी। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर न्यू कोपारे पुनर्वसन कृति फाउंडेशन की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील नवरोज सेरवाई ने दलील दी कि एनडीए ने 1967 में कोपर विलेज के 401 परिवारों के भूमि अधिग्रहित किया था। इसमें से कुछ परिवारों का पुनर्वास किया गया, लेकिन कई परिवारों को पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ है। बिल्डरों द्वारा विस्थापित परिवार की जगह पर इमारतें बनाई जा रही है, लेकिन उसमें विस्थापितों का पुनर्वसन नहीं किया जा रहा है। अदालत ने साल 2018 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को सर्वे कर जिन परिवारों का पुनर्वास नहीं हुआ है, उन परिवारों का पुनर्वास किया जाए। अदालत के आदेश के बावजूद भूमि अधिग्रण से प्रभावित परिवारों का पुनर्वास नहीं हुआ। इसके लिए उन्हें एक बार फिर जनहित याचिका दायर करनी पड़ी। पीठ ने राज्य सरकार को 29 सितंबर तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने सरकार से विस्थापित परिवारों की पूरी जानकारी देने को कहा है। अदालत ने 3 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई रखी है।

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