उपलब्धि: आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर ने खोजी तकनीक, बढ़ेगी संयंत्रों की क्षमता

  • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में 30% तक कम किया जा सकता है प्रदूषण
  • नई मिश्रधातु के प्रयोग से वैज्ञानिकों को मिले बेहतर नतीजे
  • आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर ने खोजी तकनीक

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-11 01:30 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई, दुष्यंत मिश्र। कोयला बिजली संयंत्रों की न सिर्फ क्षमता बढ़ाई जा सकती है बल्कि उनसे होने वाला प्रदूषण भी 30 फीसदी तक कम किया जा सकता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के वैज्ञानिक रिसर्च के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऑक्सीकरण-प्रतिरोधी निकल आधारित विशेष मिश्रधातु की मदद से विद्युत उत्पादन बढ़ाने और प्रदूषण कम करने में सफलता पाई गई। मिश्रधातु ने अत्यधिक तापमान व दबाव की स्थिति में बेहतर ऑक्सीकरण प्रतिरोध का प्रदर्शन किया।

शोध से जुड़े एक वैज्ञानिक ने बताया कि फिलहाल सबक्रिस्टल अवस्था (17 मेगापास्कल/एमपीए दाब एवं 540 डिग्री सेल्सियस तापमान) में कार्यरत अधिकांश कोयला बिजली संयंत्र विद्युत उत्पादन के लिए शुद्ध पानी को भाप में परिवर्तित करते हैं। उच्च तापमान वाला पानी और भाप ऑक्सीकरण के चलते मार्ग की नलियों का क्षरण होता है। साथ ही इन नलियों पर एक पतली परत चढ़ जाती है, जिससे विद्युत उत्पादन की क्षमता भी कम हो जाती है। प्रस्तावित एडवांस्ड अल्ट्रा सुपरक्रिस्टल परिवेश (एयूएससी) 32 एमपीए दाब और 710 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान में काम कर सकते हैं। इसके लिए निकल, लोहानिकल और कोबाल्ट की तापरोधी विशेष मिश्रधातु तैयार की जा रही है।

शोध में सफलता

आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने निकल आधारित विशेष मिश्रधातु 617 पर भाप ऑक्सीकरण के जो प्रयोग किए हैं उसके नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। प्रयोग के दौरान कोयला बिजली संयंत्रों के उच्च तापमान और दाब की स्थिति के प्रतिरूपण के लिए खास डिजाइन तैयार किया गया था। एयूएससी की मदद से विद्युत संयंत्र 50 फीसदी अधिक तापीय दक्षता के साथ ज्यादा कोयले का उपयोग कर उसे विद्युत में परिवर्तित करता है और कार्बनडाई ऑक्साइड का उत्सर्जन भी 30 फीसदी कम करता है।

मुश्किल था प्रयोग

डिपार्टमेंट ऑफ मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग एंड मैटेरियल साइंस के प्रोफेसर वीएस राजा ने कहा कि भारत में यह इस तरह का पहला प्रयोग था, इसमें सबसे बड़ी मुश्किल थी प्रयोग के लिए प्रतिरूपण बनाना, जिसमें 32एमपीए दाब और 710 डिग्री सेल्सियस का तापमान पैदा किया जा सके। काफी मशक्कत के बाद मेसर्स सायमेक इंजीनियर्स की मदद से स्वदेशी युक्ति पर आधारित इस सेटअप को तैयार कर लिया गया है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने में विशेषज्ञता

प्रोफेसर वीएस राजा ने बताया कार्बन उत्सर्जन को कम करने को लेकर आईआईटी बॉम्बे की विशेषज्ञता को देखते हुए केंद्र सरकार के एससी चेतल की अध्यक्षता वाले मिशन निदेशालय, एडवांस्ड अल्ट्रा सुपरक्रिटिकल परियोजना ने प्रयोग के लिए हमें आमंत्रित किया गया था। फिलहाल 600 घंटों के अध्ययन के यह नतीजे निकले हैं। इस तरह के नवाचार से हम भविष्य में स्वच्छ एवं उर्जादक्ष कोयला बिजली संयंत्र की दिशा में आगे बढ़ेंगे जो आर्थिक रुप से बेहतर होने के साथ पर्यावरण के लिए भी लाभदायक होगा।

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