अदालत: दुराचार मामले में दोषी के 10 साल के कारावास की सजा हाई कोर्ट ने रखी बरकरार

  • पत्नी की नाबालिग ममेरी बहन से दुराचार का मामला
  • दोषी व्यक्ति के 10 साल के कारावास की सजा बरकरार

Bhaskar Hindi
Update: 2024-09-15 15:19 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्नी की नाबालिग ममेरी बहन से दुराचार के मामले में दोषी व्यक्ति की निचली अदालत के 10 साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने माना कि पीड़िता के बयान, उसकी मां की गवाही और चिकित्सा साक्ष्य से अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले को साबित करने में सफल रहा है। सेशन कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया और उसे सजा सुनाई। मुझे उस निर्णय और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखाई देता है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल की एकलपीठ के समक्ष पुणे निवासी नवनाथ चंद्रकांत रीठे की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील शैलेश चव्हाण ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का अपनी पत्नी के साथ विवाद था। इसलिए पीड़िता का परिवार उसे झूठे मामले में फंसाया। याचिका में सेशन कोर्ट के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और पाक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत दोषी करार देते हुए 10 सला की कारावास की सजा को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए सेशन कोर्ट के फैसले को रद्द करने से इनकार कर दिया।

याचिकाकर्ता पीड़िता की ममेरी बहन का पति है। वह 26 जुलाई 2015 पीड़िता के घर आया और उसे अपने घर ले गया। उसने पीड़िता को जंगल में मटन लाने के बहाने ले गया। वहां उसने उसे जंगल में एक सुनसान जगह पर ले गया और उसके साथ दुराचार किया। याचिकाकर्ता ने पीड़िता के साथ मारपीट की और उसे किसी को नहीं बताने की धमकी भी दी। इसके बाद उसने उसे कुछ दूरी पर छोड़ कर फरार हो गया। पीड़िता घटना से किसी तरह घर गई और अपने परिवार के सदस्यों को आपबीती बताई। उसके परिवार ने पुणे के लोनी कालभोर पुलिस स्टेशन एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने 18 अगस्त 2015 को आरोपी नवनाथ चंद्रकांत रीठे को गिरफ्तार किया। सेशन कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के पेश सबूतों एवं गवाहों के आधार पर उसे नाबालिग से दुराचार में दोषी पाया और 10 साल की कारावास सजा सुनाई।

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