सुप्रीम कोर्ट: एनसीपी के नाम और चुनाव चिन्ह मामले पर सुनवाई टली, भूमि का मुआवजा मामले में सरकार को फटकार
- याचिकाकर्त्ता को भूमि का मुआवजा दें, अन्यथा योजना पर रोक लगेगी
- एनसीपी के नाम और चुनाव चिन्ह मामले पर सुनवाई टली
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नाम और चुनाव चिन्ह विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई फिर टल गई। इस मामले पर अब अगले मंगलवार को सुनवाई होगी। इसके साथ ही नागालैंड के एनसीपी विधायकों की अयोग्यता के मामले को भी इसी दिन सुना जाएगा। दरअसल, इन दोनों मामलों पर आज सुनवाई होनी थी, लेकिन पीठ के समक्ष यह मामले सुनवाई के लिए पहुंचे ही नहीं। इसलिए सुनवाई नहीं हो सकी और मामलों को अगले मंगलवार के लिए फिर सूचीबद्ध कर दिया गया। वहीं, शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर लंबित याचिका पर 18 सितंबर को होने वाली सुनवाई अब 20 अगस्त को मुकर्रर कर दी गई है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष यह सुनवाई होगी।
भूमि का मुआवजा मामले में सरकार को फटकार
वहीं महाराष्ट्र में लाडली बहन योजना को लेकर जारी सियासी तकरार के बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने राज्य सरकार को चेताया कि अगर वह जमीन खोने वाले व्यक्ति को उचित मुआवजा नहीं देती है तो वह लाडली बहन जैसी योजना पर रोक लगाने का आदेश देगी और अवैध रूप से अधिग्रहित भूमि पर बने ढांचे को गिराने का निर्देश देगी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ मंगलवार को पुणे के एक भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही थी, जो एक व्यापक वन संरक्षण मामला है। राज्य सरकार ने जिनके तरफ से जमीन ली थी, उसे अब तक जमीन का मुआवजा नहीं मिला है। सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार के वकील से पूछा, आपके पास लाडली बहन जैसी योजना के लिए पैसे है, लेकिन याचिकाकर्ता को मुआवजा देने के लिए पैसे नहीं है? पीठ ने मुआवजा नहीं देने पर राज्य सरकार को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि न्यायालय को हल्के में न लें। आपके पास लाडली बहन योजना के लिए पर्याप्त धन है। सारा पैसा मुफ्त में दिया गया है। आपको जमीन के नुकसान की भरपाई देनी चाहिए। दरअसल, मामला यह है कि याचिकाकर्ता टीएन गोदावर्मन के पूर्ववर्तियों ने 1950 के दशक में पुणे में 24 एकड़ भूमि खरीदी थी, जिसे राज्य सरकार ने ली थी। राज्य सरकार ने 1963 में भूमि पर कब्जा किया, लेकिन मुआवजा नहीं दिए जाने के कारण याचिकाकर्ता ने वैकल्पिक भूमि को आवंटित करने की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट ने 10 व र्षों तक वैकल्पिक भूमि आवंटित नहीं करने पर राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की। इस प्रकार 2004 में राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि मुआवजे के बदले में उन्हें वैकल्पिक भूमि आवंटित की गई, लेकिन वह भूमि अधिसूचित वन भूमि थी। इसलिए याचिकाकर्ता को इसके खिलाफ फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा। जिस पर लंबे समय से सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फिर इस मामले में सुनवाई करेगी।