बॉम्बे हाईकोर्ट: आरटीई पर सरकारी अधिसूचना रद्द, घाटकोपर होर्डिंग मामले में पुलिस से जवाब तलब, तोड़क कार्रवाई पर भी रोक

  • वंचित बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने से दी गई थी छूट
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने विज्ञापन एजेंसी के निदेशक की अंतरिम जमानत याचिका पर मुंबई पुलिस से मांगा जवाब
  • सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित कोल्हापुर के विशालगढ़ किले में सरकार की तोड़क कार्रवाई पर लगाई रोक

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-19 16:52 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरटीई पर राज्य सरकार की अधिसूचना को रद्द किया। अदालत ने कहा कि अधिसूचना को अमान्य घोषित किया जाता है। सरकार की अधिसूचना में सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित बच्चों के लिए स्कूलों को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कोटे 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने से छूट दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने कहा कि अधिसूचना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई) के प्रावधानों के विरुद्ध है। पीठ ने कहा कि अधिसूचना को अमान्य घोषित किया जाता है। अदालत ने मई में पहले अधिसूचना के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी। शुक्रवार को अधिसूचना को रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि हमारे रोक लगाने से पहले कुछ निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा कुछ प्रवेश किए गए थे। ऐसे प्रवेशों में बाधा नहीं डाली जाएगी, लेकिन फिर भी 25 प्रतिशत सीटें आरटीई के तहत भरी जाएंगी। कई याचिकाओं ने अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसमें दावा किया गया था कि यह आरटीई अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करती है। अधिसूचना ने सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल के एक किलोमीटर के दायरे में निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने से छूट दी थी। अधिसूचना से पहले सभी गैर-सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लिए ऐसे बच्चों के लिए अपनी 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना अनिवार्य था। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुई वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह ने दावा किया कि अधिसूचना ने शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया है। अधिसूचना असंवैधानिक थी और आरटीई अधिनियम के विपरीत थी, जो कमजोर वर्गों और वंचित वर्गों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार देता है। अतिरिक्त सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने दलील दिया कि अधिसूचना केवल उन गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों पर लागू होती है, जो उन क्षेत्रों में स्थित हैं, जहां कोई सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूल है।आरटीआई अधिनियम के तहत निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रवेश बिंदु कक्षा 1 या प्री-प्राइमरी सेक्शन में 25 सीटें आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्गों के बच्चों के लिए आरक्षित होनी चाहिए। इन छात्रों को मुफ़्त शिक्षा मिलती है, जबकि सरकार स्कूल को उनकी ट्यूशन फीस की प्रतिपूर्ति करती है।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने विज्ञापन एजेंसी के निदेशक की अंतरिम जमानत याचिका पर मुंबई पुलिस से मांगा जवाब

उधर बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को घाटकोपर में होर्डिंग लगाने वाली कंपनी ईगो मीडिया के निदेशक की एफआईआर रद्द करने और अंतरिम जमानत याचिका पर मुंबई पुलिस से जवाब मांगा है। अदालत ने पुलिस से एक बिंदु पर जवाब देने को कहा है, जिसमें आरोपी को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित में बताया नहीं गया है। घाटकोपर में होर्डिंग गिरने से 17 लोगों की मौत हो गई थी। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ के समक्ष कंपनी ईगो मीडिया के निदेशक भावेश भिड़े की याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने मुंबई पुलिस को 26 जुलाई तक इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने अपनी दलील में 13 मई को घाटकोपर में हुई होर्डिंग दुर्घटना को प्राकृतिक हादसा बताया गया है। ईगो मीडिया द्वारा लगाया गया होर्डिंग एक पेट्रोल पंप पर गिर गया था, जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी और 75 लोग घायल हो गए थे। पुलिस ने कंपनी के निदेशक भावेश भिड़े और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 ( गैर इरादतन हत्या), 337 (दूसरों के जीवन को खतरे में डालना), 338 (दूसरों को गंभीर चोट पहुंचाना) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद पुलिस ने भिड़े को उदयपुर से गिरफ्तार किया था। मुंबई पुलिस की अपराध शाखा की विशेष जांच टीम (एसआईटी) द्वारा उसे मुंबई लाया गया। वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद है। उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के साथ-साथ इस याचिका के लंबित रहने तक अंतरिम जमानत की का अनुरोध किया है।

सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित कोल्हापुर के विशालगढ़ किले में सरकार की तोड़क कार्रवाई पर लगाई रोक

इसके अलाव बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कोल्हापुर के विशालगढ़ किले में करीब 70 झोपड़ों को ध्वस्त करने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई। अदालत ने सरकार को तोड़क कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश दिया। साथ ही अदालत ने विशालगढ़ स्थित शाहुवाडी पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को 29 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने और यह बताने का आदेश दिया कि हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? विशालगढ़ 14 जुलाई को दो समूहों के बीच सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी और 15 जुलाई से ही राज्य के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने अशांत क्षेत्र में झोपड़ों (मकान, दुकानें) को तोड़ने की कार्रवाई शुरू कर दी थी। न्यायमूर्ति बी.पी.कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की पीठ के समक्ष झोपड़ाधारकों की ओर से वकील सुनिल तलेकर की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील सुनिल तलेकर ने पीठ को हिंसा का एक वीडियो दिखाते हुए दावा किया कि यह पूर्व सांसद छत्रपति संभाजी राजे के एक फोन कॉल के बाद हुआ था। उन्होंने अपने अनुयायियों से विशालगढ़ किले के क्षेत्र को एक विशेष समुदाय द्वारा कथित अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए कहा था। इस दौरान लाठी और हथौड़े से लैस समूहों ने खुद को शिवभक्त बताया और किले के इलाके में ही गाजापुर में एक धार्मिक ढांचे को ध्वस्त करने का प्रयास किया। सरकारी वकील प्रियभूषण काकड़े ने कहा कि राज्य केवल उन व्यावसायिक ढांचे को गिरा रहा है, जो किसी भी तरह के स्थगन आदेश द्वारा संरक्षित नहीं हैं। इस पर पीठ ने कहा कि वह किसी भी ढांचों को न गिरा जाए, चाहे वह व्यावसायिक हो या घरेलू। पीठ ने सरकार को बरसात के मौसम में तोड़क कार्रवाई शुरू करने के लिए भी फटकार लगाते हुए कहा कि यह सरकार की ही अधिसूचना के खिलाफ है। आप बरसात के मौसम में किसी के घर या व्यवसायी ढांचे को कैसे गिरा सकते हैं? हम यह स्पष्ट करते हैं कि कोई भी संरचना, चाहे वह व्यावसायिक हो या घरेलू, अगले आदेश तक नहीं गिराई जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि हम बयान दर्ज करते हैं और यदि कोई उल्लंघन होता है, तो हम आप के अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे। हम संबंधित अधिकारियों को जेल में डालने में भी संकोच नहीं करेंगे।

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