हाईकोर्ट: युवती को फोन पर अनुसूचित जाति का हवाला देकर शादी से इनकार, अब मिली जमानत
- दुराचार और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत व्यक्ति की हुई थी गिरफ्तारी
- अदालत ने माना-आपसी सहमति से बनाए गए रिश्ते
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने युवती को फोन पर अनुसूचित जाति का हवाला देकर शादी से इनकार करने वाले व्यक्ति को दुराचार और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के मामले में जमानत दे दी। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता और युवती के बीच आपसी सहमति से रिश्ते और शारीरिक संबंध बनाए गए थे। न्यायमूर्ति एम.एस.कार्णिक की एकलपीठ के समक्ष 23 फरवरी को अमित गंगाधर दुबे की ओर से वरिष्ठ वकील अशोक एम.सरावगी और सुशील उपाध्याय की दायर जमानत याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता के वकील सरावगी ने दलील दी कि साल 2014 में याचिकाकर्ता और युवती (शिकायतकर्ता) एक कंपनी में साथ काम करते थे। दोनों में दोस्ती हुई और बाद में एक-दूसरे से प्यार हो गया। उनके बीच साल 2019 तक संबंध रहे। याचिकाकर्ता युवती से शादी करना चाहता था, लेकिन उसके परिवार वाले युवती के दूसरी जाति के होने के कारण विरोध कर रहे थे। परिवार के कड़े विरोध के कारण याचिकाकर्ता ने युवती से शादी करने से इनकार कर दिया।
इसके बाद युवती ने विट्ठलवाड़ी पुलिस स्टेशन में शिकायत की कि याचिकाकर्ता ने शादी का वादा कर उसके साथ दुराचार किया और बाद में फोन पर उसे अनुसूचित जाति का होने के कारण शादी नहीं करने की बात कही। पुलिस ने युवक के खिलाफ दुराचार और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया और पिछले साल 3 सितंबर को गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद से ही वह जेल में बंद है। पीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को स्वीकार करते हुए उसे विभिन्न शर्तों के आधार पर जमानत दे दी।