बॉम्बे हाईकोर्ट: राज्य सरकार के नर्स के परिवार के प्रति असंवेदनशील रुख पर जताई नाराजगी

  • कोरोना काल में ड्यूटी पर सहायक नर्स के जान गवाने का मामला
  • पुणे के सरकारी ससून अस्पताल की नर्स के परिजनों को कोरोना से हुआ था नुकसान

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-17 15:35 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कोरोना काल में ड्यूटी के दौरान पुणे के सरकारी ससून अस्पताल की नर्स अनीता राठौड़ के परिजनों के प्रति राज्य सरकार के असंवेदनशील रुख पर नाराजगी जताई। अदालत ने माना कि कोरोना में पुणे के सरकारी ससून अस्पताल की नर्स राठौड़ के परिजनों को नुकसान हुआ है।अदालत ने सरकार को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति गिरीश एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदोश पी. पूनीवाला की खंडपीठ के समक्ष पुणे के सरकारी ससून अस्पताल में सहायक नर्स रही अनीता राठौड़ (पवार) के पति सुधाकर पवार की याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ पीठ ने कहा कि अनीता राठौड़ स्वास्थ्य योद्धाओं की एक टीम से संबंधित थीं, जिन्होंने अस्पताल में कोरोना रोगियों की देखभाल के लिए अपनी जान जोखिम में डाली थी। अदालत ने राठौड़ के परिजनों के 50 लाख रुपए के मुआवजे के दावे को खारिज करने में राज्य सरकार के असंवेदनशील रवैये पर नाराजगी व्यक्त की। रिपोर्ट के अनुसार उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, लेकिन कोरोना में रोगियों का इलाज करते समय वह अत्यधिक तनाव में थीं। राठौड़ की अप्रैल 2020 में मौत हो गई थी। उन्हें हॉस्पिटल एंड ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा भी कोरोना शहीद घोषित किया गया था।

खंडपीठ ने कहा कि इन परिस्थितियों में ऐसा प्रतीत होता है कि उसने (नर्स राठौड़) मरीजों के लिए काम करते हुए और ड्यूटी से लंबे समय तक कष्ट सहते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया है। याचिका में 29 मई 2020 के राज्य सरकार के संकल्प (जीआर) का हवाला दिया गया, जिसमें उन सरकारी कर्मचारियों के परिजनों के लिए 50 लाख रुपए का बीमा प्रदान किया गया था। कोरोना महामारी अवधि के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के समर्थन में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय राठौड़ की मृत्यु हो गई थी।

याचिकाकर्ता ने वकील ने दावा किया कि यह मामला जीआर के दायरे में आता है। हाई कोर्ट ने पिछले नवंबर में सरकारी अधिकारियों को मुआवजे के लिए उसके आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश देकर याचिका का निपटा दिया गया था। याचिकाकर्ता के मुआवजे के आवेदन को प्राधिकरण ने खारिज कर दिया, जिससे याचिकाकर्ता को फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

सरकारी वकील ने कहा कि मुआवजा केंद्र की योजना के तहत मांगा गया था, तो खंडपीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ने उक्त योजना के तहत राज्य सरकारों के लिए धन आवंटित किया था। तुम इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हो? ऐसी आपत्तियां न लें, जो अस्थिर एवं गलत हों। हमारे (हाई कोर्ट) कर्मचारियों को भी योजना के तहत मुआवजा दिया गया। जब किसी ऐसे व्यक्ति की बात आती है, जिसकी इस तरह मृत्यु हो गई है तो तकनीकी तर्क न दें। हमने जीआर का अध्ययन किया है। यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि आवश्यकता वह नहीं है, जो आक्षेपित आदेश में निर्धारित की गई है। वास्तव में पात्रता उस व्यक्ति के संबंध में होगी, जिसकी मृत्यु हो चुकी है और जब वह सतत रूप से सेवाएं प्रदान कर रहा हो। प्रथम दृष्टया आक्षेपित आदेश स्पष्ट रूप से बिना दिमाग का प्रयोग किए किया गया है। याचिकाकर्ता मुआवजे का हकदार था।

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