बॉम्बे हाईकोर्ट: तड़ीपार आदेश का प्रभाव नागरिक को स्वतंत्र आंदोलन के मौलिक अधिकार से वंचित करना है
- अदालत ने डीसीपी के महिला समेत दो लोगों का मुंबई और ठाणे से 18 महीने के निर्वासन आदेश को किया रद्द
- तड़ीपार आदेश के प्रभाव पर टिप्पणी
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) के महिला समेत दो लोगों का मुंबई और ठाणे से 18 महीने के निर्वासन (तड़ीपार) आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि निर्वासन आदेश का प्रभाव नागरिक को भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र आंदोलन के अपने मौलिक अधिकार से वंचित करना है। न्यायमूर्ति श्याम सी.चांडक की एकलपीठ के समक्ष विद्याविहार (पूर्व) में रहने वाली दीपक हरिलाल जायसवाल और चेंबूर के तिलक नगर निवासी सोनी सचिन सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में पुलिस उपायुक्त के 20 मार्च 2024 को आदेश जारी कर याचिकाकर्ताओं को दो दिनों के भीतर 18 महीने के लिए मुंबई और ठाणे की सीमा छोड़ने के निर्देश को चुनौती दी गई। तड़ीपार के आदेश में याचिकाकर्ताओं पर गिरोह बनाने, हत्या का प्रयास करने, गंभीर चोट पहुंचाने, धमकी और धोखाधड़ी करने के मामला दर्ज होने का हवाला दिया गया था।
पीठ ने एक मामले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि निर्वासन आदेश एक असाधारण उपाय है। व्यावहारिक रूप से ऐसा आदेश व्यक्ति को उस अवधि के दौरान अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने घर में रहने से भी रोकता है, जिसके लिए यह आदेश अस्तित्व में है। निर्वासन आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (डी) के तहत मौलिक अधिकार को छीनता है, इसलिए इसे अनुच्छेद 19 के खंड (5) द्वारा परिकल्पित तर्कसंगतता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों से यह स्पष्ट है कि निर्वासन आदेश पारित करने के लिए प्राप्त उद्देश्य और व्यक्तिपरक सन्तुष्टि अधिनियम की धारा 55 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। दोनों ही आदेश विवेकहीनता और मनमानी को दर्शाते हैं। इसलिए दोनों ही आदेश निरस्त किए जाने योग्य हैं।