विश्व ऑर्थराइटिस दिवस: बुजुर्गों की बीमारी अब युवा महिलाओं में मिलने लगी

  • 30 से 40 आयु की महिलाओं में बढ़ रही गठिया की बीमारी
  • हर 7 महिलाओं को घुटने बदलने पड़ते है

Bhaskar Hindi
Update: 2023-10-13 02:30 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई. लोगों की लाइफस्टाइल और खान-पान का सिस्टम बिगड़ गया है, जिसकी वजह से बीमारियों का अटैक बढ़ने लगा है। कम उम्र में ही तमाम लोग बुजुर्गों वाली बीमारियों का शिकार होने लगे हैं। इन्हीं बीमारियों में से एक है अर्थराइटिस। अर्थराइटिस को हिंदी में गठिया कहा जाता है। बुजुर्गों में पायी जानेवाली यह बीमारी अब 30 से 40 आयु की महिलाओं में पाई जा रही है। बीते 5 सालों में इन वर्गों की महिलाओं में गठिया के मामले में 10 से 15 फीसदी की वृद्धि हुई है।

हर साल 12 अक्तूबर को दुनिया भर में विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है। इस साल की थीम ‘यह आपके हाथ में, कार्रवाई करें’ है, जिसका मतलब है कि बीमारी की रोकथाम और निदान आपके हाथ में है। इस बीमारी में लोगों के जोड़ डैमेज होना शुरू हो जाते हैं और उन्हें चलने-फिरने में काफी दिक्कत होती है। आमतौर पर पहले यह बीमारी 60 से अधिक आयु वर्ग में देखा जाता था लेकिन अब युवा वर्ग भी इसकी चपेट में आ रहे है। केईएम अस्पताल के ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. मोहन देसाई ने कहा कि मोटापे और शरीर में क्रोमोसोम के कारण गठिया संबंधी समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। पहले यह समस्या बुजुर्ग महिलाओं में देखी जाती थी। लेकिन, अब 30 से 40 साल की उम्र की महिलाओं में गठिया की समस्या बढ़ती जा रही है। ओपीडी में प्रतिदिन ४ से ५ महिला मरीज जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए आती हैं।

हर 7 महिलाओं को घुटने बदलने पड़ते है

जायनोवा शाल्बी अस्पताल के ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ और घुटने के प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. धनंजय परब ने बताया कि युवा महिलाओं में जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ती देखी जा रही है। अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले 60 प्रतिशत से अधिक मरीज गठिया रोग से पीड़ित हैं। उन्होंने बताया कि 70 वर्ष से अधिक उम्र की 10 में से 7 महिलाएं घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए आती हैं। इससे पता चलता है कि महिलाओं में जोड़ों के दर्द की समस्या बढ़ती जा रही है।

दैनिक गतिविधियां करनी हो जाती है मुश्किल

अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के ऑर्थेपडिक सर्जन डॉ. जीत सावला ने बताया कि गठिया से पीड़ित युवा महिलाओं को अक्सर बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इससे चलने, खड़े होने या कलम पकड़ने जैसी दैनिक गतिविधियाँ करना मुश्किल हो जाता है। यह दर्द इतना गंभीर हो सकता है कि इससे उनके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

यह हैं वजह

डॉक्टरों के मुताबिक आनुवांशिकी, हार्मोनल बदलाव और पर्यावरणीय कारकों के कारण महिलाओं में ऑर्थेपेडिक की समस्या बढ़ रही है। महिलाओं में, एस्ट्रोजन का उच्च स्तर जोड़ों में सूजन पैदा करके गठिया के खतरे को बढ़ा सकता है। इसके अलावा मोटापा और गतिहीन जीवनशैली भी गठिया का कारण बन सकती है।


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