अतीत: फिर घूमा घड़ी का कांटा, कांग्रेस (एस) से एनसीपी (एस) तक पवार की राजनीतिक यात्रा
- कांग्रेस में हुई वापसी, फिर की कांग्रेस से बगावत
- घूमा घड़ी का कांटा
डिजिटल डेस्क, मुंबई. समय का चक्र एक बार फिर घूमा है। यह बात फिर सही साबित हुई है कि "इतिहास अपने आप को दोहराता है।' कभी कांग्रेस से बगावत कर अपनी नई पार्टी कांग्रेस (एस) बनाने वाले शरद पवार को अब अपने ही भतीजे अजित पवार के हाथों मात खाने के बाद एक बार फिर एनसीपी (एस) नाम से नया दल बनाना पड़ा है। जुलाई 1978 में पवार ने जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया। 1980 के चुनावों में कांग्रेस आई ने महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत हासिल किया और एआर अंतुले मुख्यमंत्री बने। शरद पवार ने 1983 में अपनी कांग्रेस (समाजवादी) यानी कांग्रेस (एस) की अध्यक्षता संभाली। 1984 में उन्होंने कांग्रेस एस के उम्मीदवार के तौर पर बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता। पर मार्च 1985 में शरद पवार ने राज्य की राजनीति में लौटने को प्राथमिकता देते अपनी लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस (एस) ने राज्य विधानसभा की 288 में से 54 सीटें जीतीं और पवार पीडीएफ गठबंधन के विपक्ष के नेता बन गए जिसमें भाजपा, पीडब्ल्यूपी और जनता पार्टी शामिल थी।
कांग्रेस में हुई वापसी
1986 में राजीव गांधी की पहल के बाद पवार की कांग्रेस (एस) का कांग्रेस (आई) में विलय हो गया था। उस वक्त शरद पवार ने कांग्रेस में लौटने का कारण "महाराष्ट्र में कांग्रेस संस्कृति को बचाने की जरुरत' बताई थी। उसी समय महाराष्ट्र में शिवसेना का भी उदय हो रहा था। शरद पवार की कांग्रेस (आई) में वापसी की बाद 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 48 सीटों में से कांग्रेस ने 28 सीट जीती। फरवरी 1990 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना और भाजपा बीच गठबंधन ने कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती पेश की। कांग्रेस राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत से दूर रह गई। 288 में से 141 सीटें जीत सकी। 4 मार्च 1990 को 12 निर्दलिय विधान सभा सदस्यों के समर्थन से पवार ने फिर से मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
फिर की कांग्रेस से बगावत
बाद में 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर शरद पवार ने पार्टी से विद्रोह कर दिया। आखिरकार उन्हें पार्टी से बाहर जाना पड़ा और पवार ने 10 जून 1999 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की स्थापना की। गठन के अगले साल यानी 2000 में राकांपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया था। अब एक बार शरद पवार को फिर से एक नई पार्टी का नामकरण करना पड़ा है। उनके सामने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरजचंद्र पवार) को राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बनाने की चुनौती होगी।