बॉम्बे हाईकोर्ट: केंद्र सरकार से आईपीसी अब्दुर रहमान को वीआरएस नहीं देना का पूछा कारण

    Bhaskar Hindi
    Update: 2024-05-03 16:52 GMT

    डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से आईपीएस अधिकारी अब्दुल रहमान को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) नहीं देने का कारण पूछा है। रहमान ने केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के उन्हें वीआरएस देने से इनकार करने को चुनौती दी गई है। सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि रहमान ने दूसरी शादी कर सिविल सर्विस कानून का उल्लंघन किया। इस मामले में उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल की गई थी। मामले की सुनवाई 6 मई को भी रखी गई है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष महाराष्ट्र कैडर के 1997 बैच के आईपीएस अधिकारी अब्दुर रहमान की ओर से वकील अरशद शेख और वकील जसीम शेख की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने अरशद शेख कहा कि राज्य सरकार ने 25 अक्टूबर 2019 को याचिकाकर्ता (रहमान) के सेवा से वीआरएस लेने की मांग को स्वीकार कर केंद्रीय गृह मंत्रालय को इसकी सिफारिश की थी।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने याचिकाकर्ता को वीआरएस देने से इनकार कर दिया। यह न केवल गलत है, बल्कि व्यक्ति के समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है। इस पर खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि सरकार के वीआरएस नहीं देने से कैसे समानता के अधिकार का उल्लंघन है? केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता के वीआरएस के अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक मामलों के लंबित होने का कारण बताया है। सरकारी वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने बिना अनुमति के दूसरी शादी कर सिविल सर्विस कानून का उल्लंघन किया। उन्होंने एक समुदाय विशेष के विषय में किताब लिखा और सरकार के खिलाफ होने वाले आंदोलन में शामिल हुए।

    2019 में केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) लागू किए जाने के बाद रहमान ने राज्य सरकार को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। सरकार ने उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद महाराष्ट्र मानवाधिकार आयोग की जांच शाखा में महानिरीक्षक (आईजी) के पद पर कार्यरत रहमान ने दिसंबर 2019 में ड्यूटी पर जाना बंद कर दिया था। रहमान को धुले निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव क्षेत्र से प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है, लेकिन अदालत में चल रहे वीआरएस के मामले में आने वाले फैसले पर उनका राजनीतिक भविष्य निर्भर है।

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