बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से बाल विवाह निषेध अधिकारियों का मांगा विवरण
- बाल विवाह को लेकर दायर जनहित याचिका
- 2 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने सरकार से राज्य में नियुक्त बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सीएमपीओ) की नियुक्ति पर विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। अदालत ने सरकार को ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे बाल विवाह को लेकर सभी पहलुओं पर हलफनामा दायर करने को कहा है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने बुधवार को चाइल्ड मैरिज प्रोहिबिशन कमेटी की ओर से वकील अजिंक्य उदाने की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया है कि बाल विवाह पर प्रतिबंध के बावजूद महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह हो रहे हैं। इस पर कार्रवाई के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारियों (सीएमपीओ) की नियुक्ति की गयी है। यह बच्चों के बाल विकास अधिकारी के भी खिलाफ है। बाल विवाह प्रतिबंध कानून 2006 पर अमल नहीं हो रहा है। महिला व बाल विकास विभाग की ओर से जारी आंकडे के मुताबिक सीएमपीओ को 2018 से 2022 तक 821 बाल विवाहों पर रोक लगाने में कामयाब मिली है। इसमें किसी पर एफआईआर दर्ज कर कड़ी कार्रवाई करने का कोई विवरण प्रदान नहीं किया गया है।
महाराष्ट्र में बाल विवाह निषेध अधिनियम (पीसीएमए) के गैर-कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों को उठाते हुए वकील अजिंक्य उदाने ने याचिका में पीसीएमए को प्रभावी बनाने के लिए नियम को कड़ाई से लागू करने की मांग की है। सरकारी वकील पीपी काकड़े ने अदालत को सूचित किया कि पीसीएमए के तहत पिछले साल 21 अक्टूबर को अधिसूचना जारी किया गया था। सीएमपीओ को बाल विवाह के बारे में प्राप्त शिकायतों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्तियां भी दी गईं हैं। सीपीएमओ को उन बाल विवाहों के बारे में नियमित अपडेट देने और बाल विवाह पर रोक लगाने की रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है।
खंडपीठ ने कहा कि यदि सीपीएमओ अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहता है, तो क्या अधिकारी के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है? राज्य सरकार 2 अगस्त से पहले हलफनामा दाखिल करे। खंडपीठ ने कहा कि इस अधिसूचना पर अमल करने का बाल विवाह निषेध अधिकारियों पर महत्वपूर्ण कर्तव्य है। कोई भी व्यक्ति, संगठन या शैक्षणिक संस्थान बाल विवाह की किसी भी घटना के बारे में रिपोर्ट कर सकता है, सीएमपीओ को ऐसी शिकायत के बाद जांच करने, बयान दर्ज करने और सबूत इकट्ठा करने का अधिकार है।