बांबे हाईकोर्ट ने सीडब्ल्यूसी और कारा के नाबालिग मां को समन भेज कर बुलाने पर लगाई फटकार
- अदालत ने पीड़िता से बच्चे को सौंपने के लिए शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाने पर कारा से मांगा जवाब
- अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल को अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश
- अदालत ने 15 साल की नाबालिग को सात महीने के बच्चे को गिराने की दी थी अनुमति
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) और केंद्रीय दत्तक संसाधन संस्था (कारा) को नाबालिग मां को समन भेज कर उसके बच्चे को सौंपने के लिए शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाने पर जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि पीड़िता को समन भेज कर बुलाना और उससे हलफनामा पर दस्तखत करवाना गलत है। अदालत ने सीडब्ल्यूसी और कारा को नाबालिग मां के दस्तखत किए गए हलफनामा की मूल प्रति को पेश करने और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल को 7 अगस्त को अगली सुनवाई के दौरान हाजिर रहने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने गुरुवार को 15 वर्षीय मां की ओर से वकील रेओमंड जायवाला की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सीडब्ल्यूसी के रायगढ़ के चेयरमैन हाजिर हुए। खंडपीठ ने उनसे पूछा कि एक पीड़िता को समन भेज कर बुलाना और इस तरह से शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाने का तरिका क्या ठीक है? उन्होंने बताया कि नाबालिग मां से बच्चे के सरेंडर के लिए कारा ने शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाया। कारा सीडब्ल्यूसी से सौंपे गए बच्चे को सामाजिक संस्था के जरिए बच्चे को गोद देती है।
खंडपीठ ने कहा कि हलफनामा में पीड़िता के प्रेम संबंध से बच्चे के पैदा होने का जिक्र है। ऐसा करना क्या जरुरी था? इसका जवाब सीडब्ल्यूसी के अधिकारी नहीं दे सके। अदालत ने कारा को 7 अगस्त को अगली सुनवाई पर हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है। 15 वर्षीय लड़की दायर याचिका पर हाईकोर्ट के अवकाशकालीन पीठ ने 16 मई को जेजे अस्पताल में 27 सप्ताह से अधिक की गर्भवती नाबालिग को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) की अनुमति दी थी। नाबालिग के एमटीपी की प्रक्रिया के दौरान जीवित पैदा हुआ। 5 जून को अदालत को बताया गया कि 15 वर्षीय लड़की को बच्चा जीवित पैदा हुआ है और उसे आईसीयू में रखा गया है। अदालत ने अगली तारीख तक बच्चे को अस्पताल में देखभाल करने का निर्देश दिया था।
26 जुलाई को सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे ने कहा कि बच्चा छुट्टी के लिए फिट है, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील जायवाला ने आग्रह किया कि शिशु को एक और महीने तक अस्पताल में रखा जाए। बुधवार को वकील जायवाला दावा किया था कि सीडब्ल्यूसी ने लड़की और उसके माता-पिता को एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया, जिसमें लिखा था कि वह अफेयर के कारण गर्भवती हुई है। वकील जायवाला ने कहा कि इससे नाबालिग के भविष्य पर असर पड़ेगा। सीडब्ल्यूसी ने व्हाट्सएप कॉल करके उनसे आने और बच्चे को ले जाने के लिए कहा।