भीमा कोरेगांव दंगा मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट ने माओवादी संबंधों के आरोपी महेश राऊत को दी जमानत
- एनआईए को फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए मिला एक सप्ताह का समय
- एनआईए ने राउत की जमानत याचिका का किया था विरोध
- राऊत की 31 दिसंबर 2017 को हुई थी गिरफ्तारी
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2017 के भीमा कोरेगांव दंगा मामले और माओवादी संबंधों के आरोपी महेश सिताराम राऊत को जमानत दे दी। अदालत ने राष्ट्रीय जांच प्राधिकरण (एनआईए) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इसके खिलाफ अपील दायर करने के लिए अपने आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा लगाया है। इस मामले में महेश राउत जमानत पाने वाले छठें आरोपी हैं। इससे पहले सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, आनंद तेलतुंबडे, वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा को जमानत मिल चुकी है।
न्यायमूर्ति ए.एस.गडकरी और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ गुरुवार को महेश रावत को जमानत दिया। राउत को 31 दिसंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था। तब से वह न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। नवंबर 2021 मे विशेष एनआईए अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान राउत की ओर से पेश हुए वरिष्ठ मिहिर देसाई और वकील विजय हीरेमठ ने दलील दी थी कि सह-आरोपियों आनंद तेलतुंबडे, अरुण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस के साथ समानता के आधार पर राउत को जमानत दी जाए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राउत ने 5 साल से अधिक समय हिरासत में हैं। इस मामले में मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। इसलिए वह रिहा होने के योग्य हैं। उनके खिलाफ सबूतों में मुख्य रूप से सह-अभियुक्त रोना विल्सन के कंप्यूटर से बरामद दस्तावेज़ शामिल थे। उन दस्तावेजों पर भी कथित तौर पर राउत द्वारा कभी हस्ताक्षर नहीं किए गए थे।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल देवांग व्यास और एनआईए के वकील संदेश पाटिल ने इस आधार पर राउत की जमानत का विरोध किया कि राउत द्वारा कथित तौर पर किए गए कृत्य समाज के खिलाफ थे। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोपी राउत के लिए संवैधानिक आधार पर जमानत मांगना न्यायसंगत नहीं है। जब उसके कार्य राज्य और समाज के हितों और भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता के खिलाफ हैं