बॉम्बे हाईकोर्ट: एनडीपीएस मामलों में नरमी बरतने से अवैध ड्रग्स की तस्करी में वृद्धि हो सकती है, एक्ट का उद्देश्य कमजोर होता
- अदालत ने 4 साल से हिरासत में बंद नाइजीरियन को जमानत देने से किया इनकार
- नरमी बरतने से अवैध ड्रग्स की तस्करी में वृद्धि हो सकती है
डिजिटल डेस्क, मुंबई. बॉम्बे हाई कोर्ट ने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के मामलों में नरमी बरतने से अवैध ड्रग्स की तस्करी में वृद्धि हो सकती है, जो एनडीपीएस एक्ट के उद्देश्य को कमजोर करती है। अदालत ने नाइजीरियन केनेचुकु उतेह को जमानत देने से इनकार कर दिया। वह ड्रग्स के एक मामले में चार साल से जेल में बंद है।
न्यायमूर्ति मनीष पितले की एकलपीठ के समक्ष नाइजीरियन की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ने उस समय घटनास्थल पर अपनी मौजूदगी को लेकर संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया। जब राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार किया था।
डीआरआई द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की होमलैंड सिक्योरिटी और इंटेलिजेंस से प्राप्त विशिष्ट सूचना के आधार पर मुंबई में कोकीन युक्त एक कूरियर पैकेट को पकड़ा था। आने की बात कही गई थी। पैकेट में स्टीम आयरन बॉक्स में 502 ग्राम कोकीन छिपा कर रखा गया था। उन्होंने नियंत्रित डिलीवरी के लिए कोकीन को सफेद पाउडर से बदल दिया था। डीआरआई याचिकाकर्ता और एक अन्य नाइजीरियाई नागरिक को कूरियर लेने के प्रयास में गिरफ्तार किया गया था। नाइजीरियन के वकील ने दलील दी कि वह केवल अन्य आरोपियों के साथ गया था और ड्रग्स तस्करी में शामिल नहीं था। साल 2020 की गिरफ्तारी के बाद से याचिकाकर्ता कैद में है और मुकदमे की सुनवाई में समय लगेगा।
विशेष सरकारी वकील अद्वैत सेथना ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता मेडिकल वीजा पर भारत आया था, लेकिन घटनास्थल पर रहने का कोई वैध कारण बताए बिना ही अधिक समय तक भारत में रुका रहा। सेथना ने आश्वासन दिया कि अभियोजन पक्ष मुकदमे में तेजी लाएगा, क्योंकि आरोप पहले ही तय हो चुके हैं और कम गवाहों की जांच की जानी है।
इसके बाद पीठ ने कहा कि कूरियर पैकेट को सीधे प्राप्त न करना ही उसे संलिप्तता से मुक्त नहीं करता। अदालत ने लंबी कैद की दलील को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की अब तक की कैद ऐसे अपराधों के लिए निर्धारित न्यूनतम दस साल की सजा का आधा भी नहीं है। पीठ ने मुकदमे में तेजी लाने का भी आदेश दिया।