बॉम्बे हाईकोर्ट: दल-बदल विरोधी कानून को लेकर केंद्र सरकार से मांगा जवाब

  • जनहित याचिका
  • दल-बदल विरोधी कानून को चुनौती
  • केंद्र सरकार से मांगा जवाब

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-20 15:11 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट में दल-बदल विरोधी कानून को लेकर एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई है, जिसमें सांसदों और विधायकों के दो तिहाई बहुमत से एक राजनीतिक पार्टी से दूसरी राजनीतिक पार्टी में चले जाने के अयोग्यता से दी गई सुरक्षा को चुनौती दी गई है। अदालत ने इस मामले में में केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमणी से जवाब मांगा है।

मुख्य न्यायाधीश देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को मीनाक्षी मेनन की ओर से वकील एकनाथ ढोकले की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने केंद्र सरकार को जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए 6 सप्ताह का समय दिया, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई थी कि संविधान की दसवीं अनुसूची के पैराग्राफ 4 को रद्द कर दिया जाए, क्योंकि यह अयोग्यता का प्रावधान करता है। दो दलों के बीच विलय के मामले में दलबदल का आधार लागू नहीं होता है।

मेनन की ओर से पेश वकील अहमद आब्दी ने कहा कि दलबदल एक सामाजिक बुराई है। मेनन की याचिका में कहा गया है कि दल बदल विरोधी कानून ने अपने मौजूदा स्वरूप में उन मतदाताओं के अधिकारों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है, जिन्होंने घोषणापत्र के साथ एक विशेष राजनीतिक दल से संबंधित एक विशेष उम्मीदवार को वोट दिया था। वोट विचारधारा पर लिया जाता है और बाद में सांसद और विधायक अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए पाला बदल लेते हैं। हम वोट देते हैं और वे (नेता) जनहित के लिए नहीं, बल्कि पैसों के लिए और एजेंसियों के डर से बदल लेते हैं। यह खेल दिन-रात चलता रहता है।

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