बॉम्बे हाईकोर्ट: फिल्म सिटी के प्रबंध निदेशक पर आदिवासी जमीन पर कब्जा मामले में एसीपी से मांगा जवाब

  • आरे पुलिस पर एफआईआर दर्ज नहीं करने का आरोप
  • आदिवासी जमीन पर कब्जा करने के मामले में एसीपी से मांगा जवाब

Bhaskar Hindi
Update: 2024-03-21 16:42 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई . बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि क्या आरे पुलिस एक आदिवासी के घर को ध्वस्त करने और उसकी फसलों को नष्ट करने के मामले में फिल्म सिटी के प्रबंध निदेशक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगी? अदालत ने इस मामले में दिंडोशी डिवीजन के सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) दत्तात्रेय ढोले को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर जवाब देने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-ढेरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को फिल्म सिटी क्षेत्र के एक गांव देवीचा पाड़ा निवासी किसान भगत की ओर से वकील हमजा लकड़ावाला की दायर याचिका पर सुनवाई हुई। अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचाने जाने वाले स्वदेशी मल्हार-कोली आदिवासी समुदाय से संबंधित किसान भगत का परिवार स्वतंत्रता-पूर्व से फिल्म सिटी क्षेत्र के एक गांव देवीचा पाड़ा में रहता है और उसके आस-पास की भूमि पर खेती करता है।

54 वर्षीय याचिकाकर्ता अपनी जमीन पर चावल की फसल और सब्जियां उगाता है। वह साल 1962 से कर चुकाकर फिल्म सिटी में चपरासी के रूप में काम करके अपनी आजीविका चलाता है।

भगत फिल्म सिटी की स्थापना से बहुत पहले से इस जमीन पर खेती कर रहे थे और पिछले कुछ वर्षों में कथित तौर पर फिल्म सिटी के अधिकारियों द्वारा उनकी जमीन पर कब्जा किया गया है। वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह दलील दी कि याचिकाकर्ता भरत ने आरे पुलिस स्टेशन में शिकायत की, लेकिन उसकी शिकायत पर किसी के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। फिल्म सिटी के अधिकारियों के वकील ने कहा कि फिल्म सिटी प्रशासन को दी गई जमीन सरकार की है। सरकारी जमीन पर अधिकार और कब्जे का निर्धारण करने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।

सरकारी वकील प्राजक्ता शिंदे ने कहा कि आरे पुलिस भगत की शिकायत की जांच कर रही है। सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि एससी एवं एसटी अधिनियम की धारा 4(बी) और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता की आजीविका को खतरा था। इसलिए जांच करने से पहले एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी। शिंदे ने कानूनी स्थिति से सहमति जताते हुए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचित किया कि जांच करने से पहले एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। खंडपीठ ने सहायक पुलिस आयुक्त को यह स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया कि वह एफआईआर दर्ज करेंगे या नहीं।

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