जबलपुर: दर्द बाँट कर खुशियाँ लौटाईं फिर कॉस्मेटिक सेक्टर में भी बनकर उभरे महाकोशल के ब्रांड
- स्पर्श आयुर्वेदा और स्पर्श न्यूट्राॅन ने बेहद कम समय में पकड़ी तरक्की की रफ्तार
- स्पर्श न्यूट्राॅन आज 150 से ज्यादा तरह के फूड और ड्रग प्रॉडक्ट बना रही है।
- माउथ पब्लिसिटी और क्वाॅलिटी कंटेंट कारगर साबित हुआ और ब्रांड ने काफी कम समय में महाकोशल में अपना नाम जमा लिया
डिजिटल डेस्क,जबलपुर। किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार..। अनाड़ी फिल्म के दिल को छू जाने वाले इस गीत को हर किसी ने सुना ही होगा। कुछ इसी तरह के कॉन्सेप्ट पर तकरीबन 18 साल पहले कंपनी खोली गई, सिद्धेश्वरी फार्मा।
आगे चलकर इस फर्म ने न जाने कितने ही मरीजों का दर्द बाँटा, उन्हें खुशहाली लौटाई। वहीं कंपनी अब स्पर्श आयुर्वेदा रिसर्च बनकर हेल्थ केयर सेक्टर में तेजी से उभरी है। नरसिंह बिल्डिंग, रानीताल स्थित कंपनी के संचालक दीपक हूंका बताते हैं कि प्राॅडक्ट की क्वाॅलिटी और उसके पीछे छिपी मेहनत का परिणाम है कि चंद रुपयों से शुरू किया गया सफर अब दो करोड़ के टर्नओवर को पार कर गया है।
150 से ज्यादा प्राॅडक्ट
स्पर्श न्यूट्राॅन आज 150 से ज्यादा तरह के फूड और ड्रग प्रॉडक्ट बना रही है।
इसमें बच्चों की दवा, हार्ट, शुगर, गैस्ट्रिक एंटी साइकेट्रिक, जनरल फिजिशियन के साथ न्यूरो ड्रग भी शामिल हैं।
स्पर्श आयुर्वेदा रिसर्च का दावा है कि मधुमेह, ल्यूकोडर्मा, सिरोसिस, हेयर लॉस के रिसर्च प्रोडक्ट से खुद के सेंटर में डॉ. बीके अग्रवाल के निर्देशन में इलाज करते हैं, जिसका 100% असरदार व सुरक्षित उपचार है।
कहा यह भी जा रहा है कि कंपनी द्वारा 150 मरीजों की इंसुलिन हटाई जा चुकी है और 482 मरीजों की शुगर नॉर्मल कंडीशनल में आ गई है। कंपनी के प्रॉडक्ट्स 3 साल की मेहनत का परिणाम हैं।
ऐसे आया न्यूट्रॉन
सिद्धेश्वरी फार्मा को धीरे-धीरे पहचान मिलने लगी, लेकिन अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए दीपक ने वर्ष 2022 में स्पर्श न्यूट्राॅन नाम से कंपनी बनाई। कई सारे ऑप्शन्स के साथ फूड और कॉस्मेटिक प्राॅडक्ट कंपनी ने लॉन्च किए।
खास बात यह है कि फूड प्रॉडक्ट्स को कंज्यूमर ने हाथों-हाथ लिया। बड़ी संख्या में डॉक्टर्स ने भी अपने मरीजों को रिकमंड किया।
मार्केटिंग में हारे तो क्वाॅलिटी कमाल कर गई
एक और दिलचस्प बात यह है कि न्यूट्राॅन के कॉस्मेटिक प्राॅडक्ट की सही तरीके से मार्केटिंग नहीं हो पाई। जिससे उपभोक्ता तक पहुँचने में इन्हें कुछ वक्त लगा। लेकिन जैसे-जैसे कंज्यूमर जुड़े.. फिर जुड़ते ही चले गए।
प्राॅडक्ट का इस्तेमाल होने के बाद माउथ पब्लिसिटी और क्वाॅलिटी कंटेंट कारगर साबित हुआ और ब्रांड ने काफी कम समय में महाकोशल में अपना नाम जमा लिया।
अब लकवा, हार्ट और किडनी पर रिसर्च
दीपक बताते हैं कि उन्होंने अपने तीन मित्र आयुर्वेदिक चिकित्सकों के साथ मिलकर अहमदाबाद में रिसर्च लैब स्थापित की है। जिसमें लकवा, हार्ट ब्लाॅकेज, घुटने का दर्द और किडनी की बीमारियों पर रिसर्च की जा रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे 150 सेंटर खोले जाने की प्लानिंग है।
छोटी सी जगह से छोटी शुरुआत
कंपनी की शुरुआत वर्ष 2006 में एक छोटे से कमरे से की गई। जानकर हैरानी होगी कि दीपक ने महज 51 हजार रुपए की पूंजी से इसकी शुरुआत की, लेकिन इसके पीछे जो परिश्रम रहा उसने पैसे की कमी को आड़े नहीं आने दिया। दीपक कहते हैं कि बजट गड़बड़ाया तो उन्होंने प्राइवेट जॉब की और उससे मिलने वाले वेतन को भी अपने इस प्रोजेक्ट पर लगाते गए।